रोजा इफ्तार करने वाले लोगों से क्यों तंग आ गई सऊदी अरब सरकार? उठाया ये कदम

रमजान का पवित्र महीना शुरू हो चुका है. इस महीने के दौरान दुनिया भर में मुसलमान तरह तरह के पकवान इफ्तार और सहरी के वक्त बनाते हैं. हर देश की तरह सऊदी अरब में भी इफ्तार की बड़ी-बड़ी पार्टियों का आयोजन होता है. रमजान के दौरान सऊदी अरब में खाने की बर्बादी भी बहुत बढ़ जाती है. अगर डेटा की मानें तो पूरे ही साल सऊदी के लोग खाना बर्बाद करते हैं, लेकिन रमजान में ये और बढ़ जाता है. जिसको लेकर अब सऊदी सरकार ने चिंता जाहिर की है. सऊदी अरब में अधिकारियों ने पवित्र महीने के दौरान बर्बाद होने वाले मांस को कम करने के लिए लोगों से अपील की है वे रोजा खोलते वक्त ज्यादा खाना न लें.

सऊदी अरब में वेस्ट होने वाला खाना खासकर मांस पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बन रहा है. किंगडम के जल और कृषि मंत्रालय ने कहा कि रमजान के दौरान बड़ी मात्रा में मांस लैंडफिल और डंप में चला जाता है और यह कचरा खेती के लिए चुनौतियां पैदा करता है.

एक आदमी कर देता है 184 किलो खाना बर्बाद

एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि सऊदी अरब में रहने वाला एक व्यक्ति करीब 184 किलो खाना सालाना बर्बाद करता है. ये आकड़ा देश भर में लगभग 4 मिलियन टन है. सऊदी के लोग सालाना 10.7 बिलियन से ज्यादा की कीमत का खाना बर्बाद कर देते हैं, ये डेटा सभी खाद्य पदार्थों के 18.9 फीसद नुकसान को दिखाता है. जानकारों का कहना है कि इसके पीछे की वजह लोगों में खाने की बर्बादी के प्रति घटती जागरुकता है.

मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि सऊदी अरब में हर साल 444,000 टन पोल्ट्री मांस, 22,000 टन भेड़ का मांस, 13,000 टन ऊंट का मांस, 69,000 टन मछली और 41,000 टन अन्य प्रकार का मांस बर्बाद हो जाता है.

सरकार ने की लोगों से खास अपील

सऊदी अधिकारियों ने नोटिस जारी कर लोगों से मांस की बर्बादी को कम करने और खाने की बर्बादी से होने वाले नुकसान से जागरुक होने की अपील की है. देश के सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए लोगों को सरकार की मदद करने का आग्रह किया है. साथ ही लोगों को खाना अपनी जरूरत के हिसाब खरीदने के लिए कहा गया है और दावतों में लोगों की संख्या को ध्यान में रखने और एक ही वक्त में ज्यादा भोजन न परोसने की सलाह दी है. इस नोटिस में बचे हुए भोजन को दान करने की भी सिफारिश की गई है.

हाल ही में सऊदी सरकार ने मस्जिदों में इफ्तार को लेकर कुछ गाइडलाइंस जारी की थीं, जिनके तहत नमाज पढ़ने वाली जगहों पर इफ्तार न करने की बात कही गई थी. ऐसा इसलिए कहा गया था ताकि मस्जिदों के अंदर खाने-पीने की वजह से किसी तरह की गंदगी न हो.

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