लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच मोदी सरकार ने सोमवार शाम को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है. इसके साथ ही देशभर में सीएए कानून लागू हो गया है. सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम को नागरिकता मिल सकेगी. 2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी पिच पर उतरने से पहले मोदी सरकार ने सीएए को लागू कर अपने ‘हिंदुत्व’ के तरकश में एक और तीर सजा लिया है, जिसके एक साथ कई राजनीतिक हित साधने की रणनीति है. सवाल उठता है कि सीएए के लागू होने से लोकसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?
सीएए की अधिसूचना जारी होते ही बीजेपी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘जो कहा सो किया’… मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून की अधिसूचना जारी कर पीएम ने अपनी गारंटी पूरी की. बीजेपी ने सीएए की पूरी टाइम लाइन भी दी गई है, जिसमें कहा है कि सीएए कानून 1955 में बदलाव के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 में संसद में पेश किया गया, लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 10 दिसंबर 2019 को लोकसभा और इसके अगले दिन राज्यसभा में पास हुआ. 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही सीएए कानून बना और चार साल के बाद अब मोदी सरकार ने सोमवार को सीएए की अधिसूचना जारी कर दी.
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीएए का दांव चला है, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव पश्चिम बंगाल और असम की सियासत पर पड़ने वाला है. अधिसूचना का ऐलान होते ही पश्चिम बंगाल में बीजेपी और मतुआ समुदाय ने जश्न मनाया, लेकिन असम में अखिल असम छात्र संघ ने विरोध करते हुए आंदोलन तेज करने का ऐलान कर दिया. पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए सीएए का मुद्दा सियासी मुफीद साबित हो सकता है तो असम में टेंशन बन सकता है. बंगाल में क्लीन स्वीप का सपना देख रही ममता बनर्जी के लिए चिंता का सबब बन सकता है?
बंगाल की सियासत में पड़ेगा असर
सीएए बंगाल में बीजेपी का चुनावी वादा रहा है. अमित शाह से लेकर पीएम मोदी तक ने बंगाल में सीएए लागू करने की बात करते रहे हैं और अब जब अधिसूचना जारी कर दी है तो बीजेपी को इससे अपने फायदे की उम्मीद दिख रही है. सीएए लागू होने से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी, जिसमें सबसे बड़ा फायदा बंगाल में मतुआ समुदाय को मिलेगा. राज्य में मतुआ समुदाय की बड़ी आबादी है. 2019 में बीजेपी में मतुआ समुदाय से वादा किया था कि सीएए से उन्हें नागरिकता दी जाएगी, जिसका लाभ भी उसे मिला था.
मतुआ समुदाय के बारे में कहा जाता है कि बंगाल का सियासी गणित काफी हद तक मतुआ मतों पर टिका रहता है. माना जाता है कि मतुआ वोट जिधर भी खिसका उसका पलड़ा भारी पड़ जाता है. बंगाल में लगभग एक करोड़ अस्सी लाख मतुआ समुदाय के मतदाता हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. पश्चिम बंगाल के नादिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों की कम से कम चार लोकसभा सीट में यह समुदाय निर्णायक है. सीएए के मुद्दे पर बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बनगांव और रानाघाट सीट जीती थी.
दरअसल, सीएए का मुद्दा मतुआ समुदाय के लिए अहम है. इस अहमियत को समझने के लिए मतुआ समुदाय के इतिहास को जानना जरूरी है. मतुआ समुदाय पूर्वी बंगाल और अब बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी हैं. जातियों की श्रेणी में इन्हें दलित समुदाय के तौर पर रखा गया है और नामशूद्र कहा जाता है. पश्चिम बंगाल में 17 फीसदी के करीब मतुआ समुदाय के लोग रहते हैं.पश्चिम बंगाल में बंग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के लोग काफी समय से स्थाई नागरिकता की मांग करते रहे हैं. ये हिंदू शरणार्थी हैं जो देश के विभाजन के दौरान और बाद के दशकों में बांग्लादेश से भारत पहुंचे. मतुआ समुदाय की तरह राजवंशी समुदाय को भी सीएए का लाभ है. राजवंशी भी हिंदू हैं. 1971 के बाद से इन लोगों को अब तक नागरिकता नहीं मिली है.
पश्चिम बंगाल के चार जिले नादिया , उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और पूर्वी बर्दवान में मतुआ समुदाय का प्रभाव है. इसी तरह पश्चिम बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 10 अनुसूचित जनजाति की सीटें हैं. इनमें से चार लोकसभा सीटों पर मतुआ संप्रदाय का प्रभाव है. मतुआ के साथ-साथ राजवंशी समुदाय की भी स्थाई नागरिकता की डिमांड पुरानी है. कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, अलीपुद्वार आदि में राजवंशी समुदाय की आबादी अच्छी खासी है. ऐसे में राजवंशी समुदाय का असर उत्तर बंगाल की 4-5 लोकसभा सीटों पर है. इस तरह कुल मिलाकर राज्य की चौथाई लोकसभा सीटों पर सीएए कानून का डायरेक्ट असर है.
सीएए के कानून से जिन समुदायों को फायदा होने वाला है उन लोगों ने बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनावों में खुलकर बीजेपी का साथ दिया था. यही वजह है कि सीएए कानून की अधिसूचना जारी होने के बाद बीजेपी को बंगाल में सियासी फायदे की उम्मीद लगा रखी है. ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि सीएए को लागू नहीं होने देंगे. ममता बनर्जी इस कानून को लागू करने में ढीला-ढाला रवैया अख्तियार करती हैं तो बीजेपी को उन्हें घेरने का मौका मिल जाएगा. बीजेपी को फायदा तो ममता बनर्जी को टेंशन बढ़ाने वाला है.
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