लट्ठमार होली की परंपरा कैसे हुई शुरू, जानें क्या है खासियत

मथुरा, बरसाना और नंदगांव के आस पास के इलाकों में होली का उत्सव बसंत पंचमी से ही शुरु हो जाता है. यह उत्सव लगभग 40 दिनों का होता है, जो रंग पंचमी के दिन तक चलता है. मथुरा के आस-पास के गांव में मनाई जाने वाली होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. यहां की होली देखने के लिए विदेशों से भारी मात्रा में लोग मथुरा आते हैं, लेकिन क्या आपको पता है पूरे भारत के साथ दुनिया भर में मशहूर लट्ठमार होली की यह परंपरा कैसे शुरू हुई और इसकी खासियत क्या है.

ब्रज की लट्ठमार होली

बसंत पंचमी के दिन से हर साल ब्रज में होली की शुरुआत हो जाती है और इसका समापन रंगनाथ मंदिर में होली खेलकर किया जाता है. होलाष्टक से ब्रज के मंदिरों में होली खेलना शुरू हो जाता है. जिसकी शुरुआत बरसाने की लड्डू मार होली से होती है. इसके बाद लट्ठमार होली होती है. भगवान श्रीकृष्ण के नंदगांव और राधा रानी के गांव बरसाने में मुख्य रूप से लट्ठमार होली की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. लट्ठमार होली से पहले यहां फूलों की होली और रंगों की होली खेली जाती है, जिसका एक खास महत्व माना जाता है.

लट्ठमार होली दो दिन खेली जाती है. एक दिन बरसाने में और एक दिन नंदगांव में खेली जाती हैं, जिसमें बरसाने और नंदगांव के युवक और युवतियां भाग लेती हैं. एक दिन बरसाने में नंदगांव के युवक जाते हैं और बरसाने की हुरियारिन उन पर लट्ठ बरसाती हैं और दूसरे दिन बरसाने के युवक नंदगांव पहुंचकर लट्ठमार होली की परंपरा को निभाते हैं. ब्रज में होली के खेल को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है, जिसको लेकर लोगों में उत्साह और उमंग देखने को मिलता है.

ब्रज में टेसू के फूलों से बने रंगों की होली

रंगों के इस त्योहार में ब्रजवासी सिर्फ लट्ठमार होली ही नहीं खेलते बल्कि इस दिन रंगों का भी खास महत्व होता है. रंगों में कोई मिलावट न हो. इसके लिए टेसू के फूलों से रंगों को विशेष तौर पर तैयार किया जाता है. लट्ठमार होली के दौरान यहां रसिया गायन भी आयोजित किया जाता है.

ऐसे शुरू हुई लट्ठमार होली की परंपरा

मान्यताओं के अनुसार, ब्रज में होली के खेल को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है, जिसको लेकर लोगों में उत्साह और उमंग देखने को मिलता है. लट्ठमार होली की परंपरा राधा रानी और श्रीकृष्ण के समय से चली आ रही है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण को होली का त्योहार बहुत प्रिय है. होली के दिन भगवान श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ नंदगांव से राधारानी के गांव बरसाना जाते थे. तब श्रीकृष्ण के साथ उनके सखा और राधा रानी अपनी सखियों के साथ होली की खेलती थीं, लेकिन राधा रानी के साथ मिलकर उनकी सखियां श्रीकृष्ण और उनके शाखाओं को झाड़ियों से उन्हें मारने लगती थी. माना जाता है कि तभी से यह परंपरा शुरु हुई और आज भी बरसाना और नंदगांव में यह परंपरा निभाई जाती है.

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