बहुत से लोगों के जहन में अब भी उन उन सिललिलेवार ट्रेन ब्लास्ट की यादें हैं जो 1993 में जिंदा थे या फिर बाद में उन्होंने इस घटना के बारे में पढ़ा. तारीख थी – 6 दिसंबर, 1993. लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद से लेकर सूरत और मुंबई तक, एक ही दिन ट्रेनों में लगातार विस्फोट हुए.
नाम आया अब्दुल करीम ‘टुंडा’ का. कहा गया कि बॉम्ब बनाने में एक्सपर्टऔर लश्कर ए तैयबा को ऑपरेट करने वाला टुंडा ही इन विस्फोटों का मास्टरमाइंड था मगर कल मास्टरमाइंड कहे जाने वाले अब्दुल डॉक्टर बॉम्ब के नाम से चर्चित टुंडा को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.
इससे पहले पिछले साल हरियाणा के रोहतक की एक जिला और सत्र अदालत ने 1997 के बम विस्फोट मामले में टुंडा को बरी कर दिया था. अब जब टुंडा की रिहाई हुई है, उसकी उम्र 80 साल है और राजस्थान के अजमेर की टाडा कोर्ट ने टुंडा को बरी किया है.
टुंडा पर आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां रोकथाम कानून (टाडा) के तहत मुकदमा चल रहा था. टुंडा को भले इस मामले में कोर्ट ने दोषमुक्त कह दिया मगर और आरोपियों में से एक इरफान (70) और हमीदुद्दीन (44) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. ये सभी अजमेर की जेल में बंद थे.
जिस टुंडा का नाम देश भर में 40 आतंकवादी विस्फोटों से जुड़ा रहा, वो कौन है, उस पर क्या आरोप थे और अब यहां से आगे क्या होगा, आज समझते हैं.
टुंडा का गांव, परिवार
अब्दुल करीम ‘टुंडा’ की पैदाइश साल 1943 की है. पुरानी दिल्ली के दरियागंज में छत्ता लाल मिया का इलाका है, यहीं टुंडा का जन्म हुआ. हालांकि, बाद में टुंडा का परिवार उत्तर प्रदेश के पिलखुआ चला गया. गाजियाबाद का पिलखुआ टुंडा परिवार का पैतृक गांव है. टुंडा ने शुरुआती तौर पर बढ़ई, स्क्रैप डीलर और कपड़ा व्यापारी के रूप में काम किया.
बम विस्फोट, दंगे और हिंसा
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कई जगहों पर साम्प्रदायिक दंगे हुए. कहते हैं टुंडा भी इसी कारण आतंक की ओर आकर्षित हो गया. कथित तौर पर टुंडा के रिश्तेदारों को एक भीड़ ने जिंदा जला दिया. टुंडा ने दावा किया था कि पुलिस मुसलमानों पर हमला करने वाली भीड़ में शामिल थी.
बदला लेने की मकसद से टुंडा कट्टरपंथी अहल-ए-हदीस से जुड़कर इस्लाम की प्रचार और कथित तौर पर पाकिस्तान सरकार की खुफिया एजेंसी, आईएसआई से जुड़कर भारत के खिलाफ प्लानिंग को अंजाम देने लगा. दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद देश भर में बम विस्फोट, सांप्रदायिक दंगे और हिंसा हुई.
अब आगे क्या?
बाबरी विध्वंस की पहली बरसी पर 6 दिसंबर, 1993 को ट्रेनों में जो सीरियल ब्लास्ट हुए, उसका मास्टरमाइंड टुंडा को कहा गया. बतौर आरोपी साल 2013 में टुंडा की भारत-नेपाल सीमा से गिरफ्तारी हुई. 20 मामले और 4 चार्जशीट दायर की गई मगर परिणाम कुछ ठोस नहीं निकला.
टा़डा कोर्ट ने ये कहते हुए टुंडा को बरी कर दिया कि जब तक दोष सिद्ध नहीं हो जाता, तब तक टुंडा को बरी किया जाता है. हालांकि ये केस इस तरह समाप्त नहीं होने जा रहा. सीबीआई के वकील भवानी सिंह ने कहा है कि हम इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. टुंडा की तब तक रिहाई होती है या नहीं, ये देखने वाली बात होगी.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.