होली का त्योहार इस साल देशभर में 25 मार्च 2025 को मनाया जाएगा. लेकिन देश के कई हिस्से में होली की शुरुआत कई दिनों पहले ही हो जाती है. काशी, मथुरा, वृंदावन और बरसाना की होली विदेशों में भी प्रसिद्ध है. यहां हर साल भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं. मथुरा, वृंदावन और बरसाना में कई तरह से होली खेली जाती है. कहीं फूल की होली, कहीं रंग-गुलाल की, कहीं लड्डू तो कहीं लट्ठमार होली खेली जाती है. यहां देशभर से लोग होली खेलने के लिए आते हैं.
होली रंग और उमंग से भरा पर्व है जो कि हिंदू धर्म में बेहद खास है. बुराई पर अच्छाई की जीत वाले इस पर्व को फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि पर धूम-धाम से मनाया जाता है. ऐसे में अगर आप होली मनाने की योजना बना रहे हैं तो इसके लिए देशभर में कई बेहतरीन जगहें मौजूद हैं. यहां जानिए सात ऐसे शहरों के बारे में, जहां की होली बेहद मशहूर है…
- काशी की मसाने की होली
- बरसाना की लट्ठमार होली
- मथुरा-वृंदावन की फूलों वाली होली
- फालैन गांव की होली
- उदयपुर और पुष्कर की होली
- इंदौर की होली
- महाराष्ट्र की रंगपंचमी
आइए जानें कि इन सभी 7 जगहों की होली और उनकी खासियत के बारे में विस्तार से जानते हैं..
काशी की मसाने की होली
उत्तरप्रदेश के काशी जिसे वाराणसी भी कहा जाता है, के मणिकर्णिका घाट पर खेली जाने वाली होली विश्व में काफी प्रसिद्ध है. यहां पर लोग गुलाल से नहीं बल्कि श्मशान की राख से होली खेलते हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहीं पर चिता की राख से होली खेली थी जिसके बाद से ही आज भी शिव भक्त यहां मसाने की होली खेलते हैं. धधकती चिताओं के बीच चिता की भस्म से होली खेलने की वजह से ये होली देशभर में जानी जाती है.
बरसाना की लट्ठमार होली
उत्तरप्रदेश में श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से करीब 50 किलोमीटर दूर बरसाना की होली बेहद अनूठी और खास होती है. बरसाना में लट्ठमार होली कई दिनों तक खेली जाती है. फाल्गुन पूर्णिमा से पहले ही लोग यहां होली खेलना शुरू कर देते हैं जिसके लिए नंदगांव के आसपास के पुरुष बरसाना आते हैं और बरसाना के पुरुष नंदगांव जाते हैं. इन गांवों की महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटती हैं और पुरुष ढाल लेकर बचने की कोशिश करते हैं. इस खास होली को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग यहां आते हैं.
होली का ये उत्सव एक जुलूस के साथ शुरू होता है. फिर बरसाना की महिलाए रंगों की बौछार से पुरुषों का स्वागत करती हैं और उन पर लाठियां बरसाती है. यह परंपरा भगवान कृष्ण और राधा के बीच चंचल बातचीत का प्रतीक है.
मथुरा-वृंदावन की फूलों वाली होली
बात अगर होली की हो, तो सभी के दिमाग में वृंदावन का नाम जरूर आता है. इस जगह का जुड़ाव भगवान श्रीकृष्ण से है. वृंदावन में होली अनोखे अंदाज में मनाई जाती है. यहां होली मुख्य होली से एक सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती है. मथुरा के मंदिरों में फूलों से होली खेली जाती है. ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन में राधा और गोपियों के साथ होली खेली थी. यहां होली के दिन लोग गलियों में इकट्ठा होते हैं और संगीत और नृत्य के साथ एक-दूसरे पर रंग और पानी फेंकते हैं. होली के समय पर वृंदावन के मंदिरों में इस उत्सव में भाग लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.
फालैन गांव: जलती होली के बीच से गुजरता है पंडा
मथुरा से लगभग 50 किमी दूर फालैन नाम का गांव है जिसे प्रह्लाद का गांव भी कहा जाता है. फालैन गांव की होली की खासियत यह है कि यहां एक पांडा जलती हुई होली के बीच से गुजरता है. होली के तेज लपटों से निकलने के बाद भी पांडा का बाल भी बांका नहीं होता. इस चमत्कार को देखने के लिए होली पर देश-दुनिया से कई लोग यहां पहुंचते हैं.
हम्पी की ऐतिहासिक होली
भारत के राज्य कर्नाटक के हम्पी की होली भी दुनिया भर में मशहूर है. यह जगह यूनेस्को की विश्व धरोहर में भी शामिल है. इस स्थान का संबंध त्रेतायुग की वानर सेना से माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि सुग्रीव अपनी वानर सेना के साथ इसी क्षेत्र में रहते थे. होली में यहां बड़ा आयोजन होता है जिसके लिए हजारों लोग आते हैं.
यहां पर होली का त्योहार आमतौर पर दो दिन का होता है. पहले दिन लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में अलाव जलाते हैं. दूसरे दिन रंगों और पानी से खेलते हैं और उत्सव के पकवानों का आनंद लेते हैं. होली पर हम्पी की सड़कें संगीत, नृत्य और खुशी के उत्सवों के साथ खिलखला उठती हैं.
उदयपुर और पुष्कर की शाही होली
राजस्थान में उदयपुर और पुष्कर भी होली के लिए प्रसिद्ध हैं. उदयपुर में शाही परिवार शाही अंदाज में होली मनाता है जिसे देखने के लिए बहुत से लोग पहुंचते हैं. यहां विदेशी पर्यटक होली खेलने के लिए पुष्कर आते हैं. इस होली की अनोखी बात ये है कि यहां कपड़े फाड़कर होली खेली जाती है. दरअसल, उदयपुर में शाही परिवार द्वारा होली उत्सव एक भव्य और शानदार समारोह है. मेवाड़ के शाही परिवार , जो उदयपुर की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक हैं. उत्सव एक शाही जुलूस के साथ शुरू होता है जिसमें मेवाड़ के महाराणा अपने शाही घोड़े पर सवार होते हैं.
यह जुलूस उदयपुर की गलियों से शुरू होते हुए सिटी पैलेस में खत्म होता है. इस उत्सव का मुख्य आकर्षण “होलिका दहन” समारोह है, जहां बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में अलाव जलाया जाता है. अगले दिन, शाही परिवार और उनके मेहमान रंगीन होली उत्सव में भाग लेते हैं, रंगों से खेलते हैं और पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते हैं.
इंदौर की होली
होली के बाद मध्य प्रदेश के इंदौर में रंगपंचमी पर रंग खेला जाता है. यहां हर साल रंगपंचमी पर एक गाय निकलती है. इस गैरसैंण में इंदौर के साथ-साथ दूसरे शहरों से भी लोग शामिल होते हैं.
महाराष्ट्र की रंगपंचमी
रंगपंचमी भारत के महाराष्ट्र राज्य में होली के पांच दिनों के दौरान मनाया जाने वाला एक बेहद लोकप्रिय त्योहार है. विशेष रूप से यह त्योहार मछुआरा समुदाय के बीच लोकप्रिय है, क्योंकि वे इस त्योहार को शिमगो के नाम से बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाते हैं.
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