गुप्त नवरात्रि का पहला दिन माता कालिके को समर्पित होता है. यह दिन काल की देवी का माना जाता है. यह पापियों और दुष्टों को अपने अंदर निगल लेती हैं. इन्हें श्मशान की देवी भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता कालिके को मां जगदंबा का महामाया रूप कहा जाता है. मां सती ने पार्वती माता के रूप में जन्म लिया था. सती रूप में उन्होंने दस महाविद्याओं के माध्यम से अपने दस जन्मों की झांकी भगवान शिव को दिखाई थी.
माता कालिके का परिचय
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता कालिके भयंकर, अंधकार और श्मशान की देवी हैं. इनके मुख्य शस्त्र त्रिशूल और तलवार है. माता कालिके का सप्ताह में शुक्रवार के दिन मुख्य रूप से उनका पूजन किया जाता है. माता कालिके के भी और चार रूप माने जाते हैं. पहला – श्मशान काली, दूसरा – दक्षिणा काली, तीसरा- मातृ काली और चौथा- महाकाली रूप है. माता कालिके ने महिषासुर, चंड, मुंड, रक्तबीज, धम्राक्ष, शुम्भ और निशुम्भ आदि राक्षसों का वध किए थें. माता कालिका की ज्यादातर बंगाल और असम में पूजा की जाती है. श्रीमार्कण्डेय पुराण और श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार माता कालिके की उत्पत्ति जगत जननी मां अम्बा के ललाट से हुई थी. लेकिन इनकी कुछ अन्य पौराणिक कथाएं भी उपलब्ध हैं.
माता कालिके की पूजा विधि
- ऐसी मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि के पहले दिन माता कालिके की पूजा के लिए सरल नियमों को अपनाया जाता हैं.
- माता के इस रूप की पूरी निष्ठा और सच्चे मन से पूजा के लिए सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना शुभ माना जाता है.
- स्नान करने के बाद घी का दीपक जलाएं और फिर मां को लाल रंग के फूल अर्पित करें.
- मां काली को भोग में मिठाई, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल, अक्षत, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ चढ़ावें. इस पूजा में गुड़ का विशेष महत्व होता है.
माता कालिके का साबर मंत्र
माता कालिके से जुड़े वैदिक, पौराणिक तथा साबर मंत्र दो प्रकार के हैं-
पहला मंत्र
ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली, चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई, अब बोलो काली की दुहाई।
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने वाले को आर्थिक लाभ प्राप्त होता है तथा धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती हैं.
दूसरा मंत्र
ॐ कालिका खडग खप्पर लिए ठाड़ी ज्योति तेरी है निराली पीती भर भर रक्त की प्याली कर भक्तों की रखवाली ना करे रक्षा तो महाबली भैरव की दुहाई।।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंत्र के जप से शत्रु, भय और भूत-प्रेत भय से छुटकारा मिलता है. यह भी माना जाता है कि इस मंत्र से हर तरह के तांत्रिक प्रभाव आदि दूर हो जाते है और रोग-शोक के साथ शारीरिक और मानसिक दोष दूर होते हैं.
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