अमरकंटक जाते समय शहडोल के जयसिंहनगर में पड़े थे भगवान श्रीराम के कदम

शहडोल। अयोध्या से वनवास पर जाते समय भागवान श्रीराम अमरकंटक शहडोल जिले के जयसिंहनगर क्षेत्र से निकले थे और सीतामढ़ी में रुके भी थे। यहां 15 किलोमीटर दूर गंधिया में सीतामढ़ी मंदिर है, जहां भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण रुके थे।यहां एक रात रुककर विश्राम किया था और भोजन किया था।जिस रसोई में माता सीता ने भोजन बनाया था, वह रसोई आज भी है,जिसे सीता रसोई के नाम से जाना जाता है। राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास ने भी सीतामढ़ी को उन स्थानों में चिंहित किया है,जहां भगवान श्रीराम के पद चिंह पड़े हैं।

त्रेता युग में भगवान श्रीराम जिन स्थानों पर पहुंचे थे, ऐसे 290 स्थानों को पूरे भारत में राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास ने चिंहित किए हैं,जिसमें शहडोल के सीता मढ़ी का उल्लेख है।राम पथ गमन में शहडोल से अमरकंटक जाने वाले चिहिंत मार्ग में यह स्थान शामिल है।भगवान श्रीराम ने वनवास के समय सबसे ज्यादा समय मध्यप्रदेश में बिताया था। भगवान श्रीराम के वनवास मार्ग पर जो भी स्थान हैं, उन्हें प्रदेश सरकार रचनात्मक पथ के रूप में विकसित करने की तैयारी में हैं, इनमें शहडोल संभाग के 5 स्थान शामिल हैं। इन स्थानों पर इंटरप्रिटेशन सेंटर के साथ वनवास के समय बिताए गए पलों की शिल्प व चित्र और इंडोर व आउटडोर थियेटर सहित अन्य काम होंगे।

पौराणिक मान्यता के अनुसार चित्रकूट से सतना जिले से होते हुए भगवान श्रीराम सबसे पहले मार्कण्डेय आश्रम पहुंचे थे। यह वर्तमान में मानपुर विकासखण्ड के दरबार गांव मेें पड़ता है। बृहद ब्रह्म पुराण में श्रोण भद्र के माहात्म्य वर्णन में भगवान श्रीराम ने माता सीता और लक्ष्मण जी की उपस्थिति में मार्कण्डेय आश्रम संगम जो वर्तमान में छोटी महानदी के दक्षिणी भाग में स्थित है, में अपने बैकुंठवासी पिता महाराज दशरथ का पिण्डदान किया था। यहां भगवान राम ने रूककर तपस्या की थी। मार्कण्डेय आश्रम के बाद भगवान राम ने बांधवगढ़ के लिए प्रस्थान किया।

श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण किया था, दशरथ घाट कहलाता है

किवदंती है कि उन्होंने यहां एक चौमासा व्यतीत किया था। बांधवगढ़ के बाद भगवान राम ने सोन नदी और जोहिला नदी के संगम में बैकुंठवासी पिता दशरथ के नाम से श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण किया था, इसलिए यह दशरथ घाट कहलाता है। बिजौरी गांव के समीप इस स्थान पर आज भी आसपास के आदिवासी श्रद्धाभाव से यहां पिंडदान करते हैं। मकर संक्रांति पर यहां मेला भरता है। भगवान कार्तिकेय की मूर्ति है। दशरथ घाट के बाद भगवान श्रीराम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ शहडोल के जंगल पहुंचे। इस स्थान को वर्तमान में सीतामढ़ी नाम से जाना जाता है।

मंदिर की देखरेख करने वाले जयनारायण तिवारी ने बताया कि भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान शहडोल स्थित सीतामढ़ी से अनूपपुर जिले के कोतमा तहसील स्थित सीतामढ़ी गए थे इसके बाद यहां से वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य की ओर चले गए थे। सीतामढ़ी मंदिर बहुत प्रचीन और ऐतिहासिक है।यहां भगवान राम सीता और लक्ष्मण आए थे, ऐसा बताया जाता है।यहां वह रसोई आज भी है,जिसमें सीता माता ने भोजन पकाया था। यहा भगवान भोलेनाथ की पुरानी प्रतिमा है।अभी तक मंदिर के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है,जबकि बहुत पुराना और ऐतिहासिक है।

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