भोपाल। नवाबों और झीलों की नगरी भोपाल में समय के साथ-साथ बहुत कुछ बदल गया। नवाबी दौर में इस नगरी की शान रही ऐतिहासिक इमारतें व अन्य विरासतें धीरे-धीरे अपनी पहचान खोती जा रही हैं। ऐसी ही एक विरासत है, पुराने शहर की गली परी बाजार, जहां कभी सुंदरियों का मेला लगा करता था। शहजादियों को ही इसमें आने की इजाजत होती थी। सभी तरह के इंतजाम महिलाओं के हाथों में हुआ करते थे।
झांक भी नहीं सकते थे पुरुष
यही कोई डेढ़ सौ साल पुराने इस बाजार में बेगम शाहजहां ने नवाब शहजादियों और बेगमों के लिए खास पर्दे का इंतजाम करवाते हुए 15 फीट ऊंची दीवार के परकोटे में यह बाजार सजवाया था। सुरक्षा का जिम्मा भी महिलाओं के हाथों में होता था। इस तरह यह भोपाल का पहला महिला बाजार था। अब इसी नाम से शहर का एक महिला ग्रुप बेगम्स आफ भोपाल कुछ सालों से बड़ा आयोजन कर रहा है।
खंडहर भी नहीं बचे
गली परी बाजार में तीन पीढ़ियों से निवासरत सलीम मिर्जा बताते हैं कि गली अमीरगंज शाहजहांनाबाद में तीन साल पहले तक परी बाजार के खंडहर मौजूद थे। कोरोना काल में लगे लाकडाउन के दौरान इसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया। सुनने में आया है कि प्रशासन यहां पीपीटी मोड पर कोई माल बनाने वाला है।
पुरुषों का प्रवेश था प्रतिबंधित
93 वर्षीय सलीम बेग बताते हैं कि परी बाजार के मुख्य द्वार पर दो गार्ड रूम हुआ करते थे। सख्त पहरा हुआ करता था मर्दों को इसमें प्रवेश नहीं था। सलीम कहते हैं कि जब वे बच्चे थे, तब मां के साथ जाया करते थे। यहां बड़ी मशहूर शख्सियत कौल साहब हुआ करते थे। वे कश्मीरी पंडित थे। यहीं कुरवाई नवाब की बेटी कैशर बिया रहती हैं। इनका कालेज और स्कूल चलता है। सलीम आगे बताते हैं कि लगभग एक एकड़ जमीन में कई मकानों के साथ दो बड़े बंगले और 21 दुकानें थीं, जो फलदार पेड़ों जैसे अमरूद, जामुन, आम, नीम और बरगद से घिरी रहती थीं। धरोहरें निशानियां होती हैं इन्हें उजाड़ देखकर दुख होता है । इस अनूठी धरोहर को संजोया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नही हो सका तो अब यादगार के रूप में इसे नए रूप में बनवाया जाना चाहिए।
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