इंदौर। जीएसटी कानून को लागू करते समय इसकी सबसे बड़ी खासियत इसमें वर्णित इनपुट टैक्स क्रेडिट यानी आइटीसी के नियम को बताया गया था। इसे जीएसटी की रीढ़ करार दिया जा रहा था। लेकिन अब आइटीसी को ही सबसे दुरुह बनाते हुए ऐसा स्वरुप दे दिया गया है कि करे कोई और भरे कोई वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। जीएसटी में आइटीसी की व्यवहारिकता का विश्लेषण करते हुए कर और कानून विशेषज्ञों ने यह बात कही। सोमवार शाम माहेश्वरी भवन में मध्य प्रदेश टैक्स ला बार एसोसिएशन ने आइटीसी पर विभिन्न कानूनी निर्णयों के विश्लेषण पर कार्यशाला का आयोजन किया था।
कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में कस्टम और सेंट्रल जीएसटी विभाग के अपर आयुक्त मोहम्मद सालिक परवेज मौजूद थे। कानून की बारीकियों और उन पर आए न्याय निर्णयों को समझने के लिए 200 से ज्यादा कर पेशेवर (सीए-करसलाहकार व एडवोकेट) कार्यशाला में शामिल हुए। अपर आयुक्त मोहम्मद सालिक परवेज ने कहा कि कर सलाहकार विभाग और व्यवसायी को जोड़ने वाले पुल की तरह काम करते हैं। राजस्व संग्रहण में मदद कर आप राष्ट्र निर्माण में भी योगदान देते हैं।
उन्होंने कहा कि यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जब भी कोई कानून बनता है और लागू होता है तो उसकी खूबियों के साथ कमियां भी सामने आती है। जीएसटी में ऐसी कमियां है तो आप सभी कर पेशेवरों की मदद से वे दूर होंगी और इस दिशा में काम भी हो रहा है। इससे पहले कार्यशाला की शुरुआत करते हुए प्रमुख वक्ता एडवोकेट एके दवे ने कहा कि आइटीसी को तमाम धाराओं, नियमों और अधिसूचनाओं से बांध दिया गया है।
कानून का उद्देश्य खत्म हो रहा
100 से अधिक ऐसे अव्यवहारिक नियम बना दिए गए हैं जिनकी आड़ लेकर आइटीसी के जायज क्लेम को रोका जा रहा है। चावला ने कहा कि देश में सिर्फ पांच प्रतिशत लोग ऐसे होंगे जो आदतन टैक्स चोरी करते हैं। इनके कारण आइटीसी की क्लेम प्रक्रिया को अव्यवहारिक बनाकर शेष ईमानदार 95 करदाताओं को परेशान किया जा रहा है।
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