ग्वालियर। वर्ष 1990 में कारसेवा में तो पुलिस से बचते-बचाते भागते-दौड़ते रहे। छह दिसंबर को विवादित ढांचा गिराकर रामलला को विराजित करने का कार्य प्रारब्ध के पुण्यों से मिला, क्योंकि रामकाज में सहभागिता कई जन्मों के पुण्योदय होने पर मिलती है अब मन में तीवृ लालसा है कि कब अयोध्या धाम पहुंचकर रामलला के दर्शन कर कृतज्ञता जता सकें। मालूम पड़ा है कि 17 फरवरी को अयोध्याधाम दर्शनों के लिए जाने के निर्देश मिले हैं।
यह बात श्याम बिहारी प्रजापति ने कही, वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शारीरिक प्रमुख का दायित्व संभालने के साथ ही एलआइसी में नौकरी करते थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रीय पदाधिकारी अनिल ओक के नेतृत्व में पहुंचीं टोलियों में से एक टोली के प्रमुख श्याम बिहारी प्रजापति की थी। उन्होंने कहा कि वर्ष 1990 व 1992 में हुई कारसेवा में सहभागिता करने का सौभाग्य रामजी की कृपा से मिला। टोली को पीछे से गुबंद पर चढ़कर उसे धराशायी करने का दायित्व सौंपा गया था। पवन पुत्र हनुमानजी की कृपा से विवादित ढांचे का पहला गुंबद गिराने में हमारी टोली सफल हुई। एक के बाद एक पूरा ढांचा धराशायी हो गया, उसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद रामलला को उसी स्थान पर विराजित करने का दायित्व मिला। उसे भी पूरा किया।
हम ठान चुके थे, इस बार प्रतीकात्मक नहीं, अंतिम कारसेवा करनी है
1990 की कारसेवा के बाद एक बार फिर रामभक्तों का आह्वान कारसेवा के लिए किया गया। इस बार तारीख 6 दिसंबर 1992 तय की गई। वरिष्ठ नेतृत्व के आह्वान पर टोलियां देशभर से अयोध्या धाम के लिए कूच करना शुरु हो गई थीं। कारसेवक श्याम बिहारी मिश्रा ने बताया कि मैं मूल रूप से उत्तर प्रदेश का निवासी था और भिंड में बस गया था और संघ में शारीरिक प्रमुख का दायित्व निभा रहा था। तत्कालीन प्रांत के शारीरिक प्रमुख अनिल ओक के सानिध्य में अयोध्या जाने के लिए तीन टोलियां बनाईं गईं थी। एक टोली के प्रमुख पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य, दूसरी टोली के प्रमुख धर्मेंद्र गुर्जर व तीसरी टोली का प्रमुख मैं था। हमारी टोलियां कारसेवा के लिए 22 नवंबर को ही अयोध्याधाम पहुंच गईं थीं। हालांकि वरिष्ठ जनों का कहना था कि इस बार कारसेवा प्रतीकात्मक होगी। सरयू की एक मुट्ठी रेत व एक अंजुली जल जन्मभूमि के पास स्थित गड्ढे में डालकर उसे भरना हैं। किंतु अनुशासिक स्वयं सेवक होने के बावजूद हम ठान चुके थे कि इस बार प्रतीकात्मक नहीं गुलामी के प्रतीक विवादित ढाचे को गिराकर दम लेंगे। शायद नियति भी यह तय कर चुकी थी और शायद वरिष्ठजनों की भी यही इच्छा थी।
50 टोलियां बनीं, हर टोली पर अलग-अलग दायित्व था
अयोध्या पहुंचने के बाद अलग-अलग 50 टोलियां बनीं, हर टोली में 10 कारसेवक थे। इन कारसेवकों का चयन भी उनकी शारीरिक संरचना के अनुसार दायित्व सौंपने के इरादे से किया था। हरेक टोली को माथे पर एक रंग की पट्टी बांधनी थी। जैसे कुंदाली वाली टोली लाल रंग की पट्टी, तस्सल व फावड़े वाली टोली और रस्से पर चढ़ने वाली टोली अलग थी। टोली के सदस्यों को रस्से पर चढ़ने का अभ्यास भी कराया गया था। स्वयं सेवक अनिल ओक की तीन टोलियों को पीछे से कंटीली झाड़ियों को काटने के बाद दीवार फांदकर गुंबद पर चढ़ना था। टास्क मुश्किल था, किंतु रामकाज होने के कारण आसान नजर आ रहा था। एक जयघोष के बाद हम लोगों को अपना सामान लेकर गुंबद की तरफ दौड़ लगानी थी। जयघोष होते ही हमारी तीनों टोलियों ने दौड़ लगा दी। साढ़े दस बजे के लगभग हमारी टोली गुबंद पर चढ़ने पर सफल हो गई। गुंबद के आसपास तिब्बत पुलिस थी। हम लोगों ने नमस्ते कर पहले ही हाथ जोड़कर उनसे अनुरोध कर लिया कि आज हम लोग ढांचा गिराकर रहेंगे। हथियारबंद जवान वहां से दूर चले गए। 12 बजे के लगभग हमारी टोली ने पहला गुंबद गिरा दिया।
गुंबद की ईंटें गिरना शुरु होते ही वह रेत की तरह गिरने लगा
श्याम बिहारी प्रजापति ने बताया कि गुंबद की ईंटें गिरना शुरु होते ही वह रेत की तरह गिरने लगा। नीचे से भी कुछ कारसेवक गुंबद पर प्रहार कर रहे थे। पहला गुंबद 12बजे के लगभग गिरा, जिससे कारसेवकों में उत्साह की लहर दौड़ गई और साढ़े चार घंटे में विवादित ढांचा गिर चुका था। हम लोग अपने निर्धारित स्थान पर लौट आए। थके होने के कारण दूरदर्शन के समाचार सुनने लगे। न्यूज एंकर सलमा सुलताना ने आखिरी में बताया कि कारसेवकों ने विवादित ढांचे को नुकसान पहुंचाया और कई राज्यों में भाजपा शासित सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है, उसके बाद सात बजे के लगभग वरिष्ठ नेतृत्व का निर्देश मिला कि उसी स्थान पर सफाई कर रामलला को विराजित करना है, अन्यथा स्टे के बाद ऐसा ही पड़ा रहेगा। ठिठुरनभरी ठंड में फिर पहुंचे, वहां सफाई कर तड़के तक रामलला को विराजित कर आरती की।
पुत्तन बाबा का दाह संस्कार किया
दुख की बात थी कि मलबे के नीचे मेहगांव के बाबा पुत्तन सहित चार कारसेवकों का बलिदान हुआ है। दूसरे दिन सात बजे पुत्तन बाबा का शव मिला। सरयू के किनारे बाबा के शव को लेकर पहुंचे। वहां पहुंचकर मालूम पड़ा कि बाबा गृहस्थ थे और उनके गुरुभाई अयोध्या में ही है। लाल कोठी में गुरुभाई की तलाश की। इसी बीच अंतिम संस्कार की तैयारी की। अशोक सिंघल, जयभान सिंह पवैया ने श्रद्धासुमन अर्पित किये। पुलिस के वहां से पहुंचने से पहले हम लोग निकल गए और बाबा का अंतिम संस्कार कर अयोध्या से विदा ली। इस बात का सुकून था कि रामलला जन्मस्थान पर विराजित किये जा चुके थे। भिंड पहुंचकर मालूम चला कि मेरे नाम का गिरफ्तारी वारंट निकल चुका है। बच्चों को इधर-उधर शिफ्ट किया। प्रभु श्रीराम की कृपा से ऐसी परिस्थिति बनी कि गिरफ्तारी भी नहीं हुई।
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