जबलपुर। सुप्रीम कोर्ट ने अशासकीय अनुदान प्राप्त महाविद्यालयों के प्राध्यापकों को सातवें वेतनमान का लाभ देने के संबंध में हाई कोर्ट की एकलपीठ को अवमानना याचिका पर आगे कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि हाई कोर्ट की एकलपीठ अवमानना मामले में उचित कार्रवाई करते हुए मूल याचिका के निर्देश को पूरा कराए। यदि ऐसा लगे कि जानबूझकर आदेश का पालन नहीं किया गया है, तभी संबंधित अधिकारी को तलब करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था देने के साथ ही हाई कोर्ट के युगलपीठ के निर्णय को निरस्त कर दिया।
हाईकोर्ट ने दिया था सरकार को निर्देश
उल्लेखनीय है कि मप्र अशासकीय अनुदान प्राप्त महाविद्यालयीन प्राध्यापक संघ के प्रांताध्यक्ष डा. ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी व डा. शैलेष जैन ने सातवें यूजीसी वेतनमान के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एलसी पटने व अभय पांडे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि हाईकोर्ट की एकलपीठ ने अपने आदेश में सरकार को निर्देश दिए थे कि याचिकाकर्ता को 90 दिन में उक्त लाभ देने पर निर्णय लें। मप्र सरकार के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा समय सीमा में निर्णय नहीं लेने पर अवमानना याचिका दायर की गई।
हाईकोर्ट का आदेश निरस्त
हाई कोर्ट ने विभाग के प्रमुख सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के निर्देश दिए थे। हाई कोर्ट ने जुलाई 2023 में प्रमुख सचिव वित्त को सातवें वेतनमान के संबंध में उचित निर्णय लेने के निर्देश दिए थे। इसी बीच राज्य शासन की ओर से हाई कोर्ट में रिट अपील प्रस्तुत की गई। हाई कोर्ट ने शासन के पक्ष को स्वीकार करते हुए विभाग की अपील स्वीकार करते हुए अवमानना प्रकरण पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट के इस निर्णय को संघ ने चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की युगलपीठ का आदेश उद्देश्य विहीन होने के कारण उसे निरस्त किया जाता है।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.