बुरहानपुर। देश और दुनिया के लिए अबूझ पहेली रहे आध्यात्मिक गुरु आचार्य रजनीश (ओशो) की मृत्यु भी उनके अनुयायियों के लिए सदैव अनसुलझी पहेली रही है। अधिकांश लोगों का मानना था कि ओशो की लोकप्रियता से डरी अमेरिकी सरकार ने उन्हें बारह दिन जेल में रखा था। इस दौरान उन्हें धीमा जहर दिया गया, जिससे 1990 में उनकी मृत्यु हो गई थी।
आचार्य रजनीश के छोटे भाई और आध्यात्मिक गुरु स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने इस मान्यता को नकारते हुए कहा है कि ओशो को मृत्यु से दस माह पूर्व ही खुद के दुनिया छोड़ने का आभास हो गया था। उन्होंने अपने प्रवचन के दौरान भी और इस अवधि में लिखी गई किताबों में भी इस बात का जिक्र किया था। हालांकि विशेषज्ञ उनकी मौत के लिए रेडिएशन को जिम्मेदार मानते हैं।
उन्होंने कहा कि ओशो ने जो खुद अनुभव किया वही ज्ञान औरों को दिया। इसीलिए उन्हें विरोध का सामना भी करना पड़ता था। शहर की मेक्रो विजन एकेडमी में 29 दिसंबर से एक जनवरी तक आयोजित जीना इसी का नाम है ध्यान योग शिविर को मार्गदर्शन देने शहर आए स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने गुरुवार को पत्रकारों से चर्चा के दौरान यह खुलासा किया है। इस दौरान शिक्षाविद आनंद प्रकाश चौकसे, मंजूषा चौकसे भी मौजूद थीं। उन्होंने बताया कि इस ध्यान योग शिविर में मुंबई, दिल्ली सहित कई शहरों से लोग शामिल हो रहे हैं।
इंसान रूपी बीज वृक्ष न बन पाए तो जीवन बेकार
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने कहा कि इंसान भगवान के बीज की तरह है। यह जब अंकुरित होकर वृक्ष बनता है अथवा पुष्पाच्छादित होता है, तभी जीवन सफल होता है। ऐसा नहीं होने पर जीवन बेकार है। हम सभी में परमात्मा होने की संभावना विद्यमान है। श्रम और साधना के जरिए हम जब एक ओंकार की अंतर्मन में ध्वनि सुनने लग जाते हैं, तब हम परमेश्वर से एकाकार कर लेते हैं। हमें बाहर की परिस्थितियों को नहीं बल्कि मन: स्थिति को नियंत्रित करने की जरूरतर है। दृष्टि में परिवर्तन हमारा जीवन ही बदल देता है। उन्होंने स्वधर्म को महत्वपूर्ण बताते हुए इसके साथ जीवन जीने पर जोर दिया। रोबोट की तरह जीने वाले नर्क का और होशपूर्वक जीने वाले स्वर्ग का अनुभव करते हैं।
वर्तमान को पकड़ना सीखना होगा
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती की पत्नी मां अमृत प्रिया ने कहा कि इंसान आमतौर पर भूतकाल और भविष्य में जता है। हमें वर्तमान को पकड़ना सीखना होगा। प्रेम पूर्ण जीने की कला सीखनी होगी। प्रेम ही परमात्मा है। उन्होंने कहा कि प्रेम देने की वस्तु है, मांगने की नहीं। इसी के ताने-बाने से आत्मा बनी है। प्रभु का प्रकट रूप ही जीवन है। उन्होंने कहा कि अहंकार से दूर रहकर जिएं।
बचपन से ले ली थी दीक्षा
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने बताया कि उन्होंने बचपन से ही आचार्य ओशो से दीक्षा ले ली थी। आध्यात्म के साथ उन्होंने स्कूल और एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। करीब बीस साल तक चिकित्सक के रूप में सेवाएं दीं। उनकी पत्नी ने संगीत शिक्षिका के रूप में सेवाएं दीं। बाद में उन्हें एहसास हुआ कि यह कार्य करने वाले बहुत लोग हैं, लेकिन आध्यात्म की शिक्षा देने वाले कम हैं। इसलिए अब पेशा छोड़ कर पूरी तरह आध्यात्मक को समय दे रहे हैं। उन्होंने आचार्य ओशो की किताब संभोग से समाधि तक और बुक आफ सीक्रेट्स के बारे में भी जानकारी दी।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.