दस से ज्यादा दवा कंपनियों में कफ सिरप में इस्तेमाल हो रहे कच्चे माल की जांच

इंदौर। खांसी की दवा (कफ सिरप) पर केंद्र के अलर्ट के बाद अब इंदौर में भी जांच तेज हो गई है। पांच दिनों में सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (सीडीएसओ) के अधिकारियों ने इंदौर में 10 से ज्यादा दवा कंपनियों की जांच कर ली है। कंपनियों से कफ सिरप में इस्तेमाल हो रहे कच्चे माल (एपीआइ) का रिकार्ड लिया गया है। इस बीच दवा निर्माताओं के संगठन फेडरेश आफ फार्मा आंत्रप्रेन्योर्स (एफओपीई) ने दवा निर्माताओं के लिए गाइडलाइन जारी कर दी है।

5 दिसंबर को केंद्र ने कफ सिरप के निर्माण में उपयोग किए जा रहे तीन प्रमुख तत्वों (एपीआइ) को लेकर निर्देश जारी किया था। सभी राज्यों के विभाग को आदेश दिया था कि सुनिश्चित किया जाए कि एपीआइ फार्मा ग्रेड ही हो। न कि इंडस्ट्रियल उपयोग के लिए आने वाले सस्ते कच्चे माल से दवा बना दी जाए। इसके बाद 13 दिन तक क्षेत्रीय सीडीएसओ और राज्य खाद्य औषधि प्रशासन के अधिकार सुस्त रहे। सिर्फ एक ही निर्माता के यहां जांच की गई।

 

नईदुनिया ने लापरवाही की ओर दिलाया था ध्यान

नईदुनिया द्वारा लापरवाही की ओर ध्यान दिलाने के बाद बीते करीब छह दिनों में 10 से ज्यादा दवा निर्माताओं के यहां अधिकारी जांच के लिए पहुंचे हैं। ये सभी ऐसी कंपनियां हैं जो कफ सिरप बनाती है। इनमें से कुछ निर्यातक कंपनियां भी हैं। सूत्रों के अनुसार सभी फैक्ट्रियों से कच्चे माल की जांच रिपोर्ट, बिल और सैंपल के साथ दो साल का रिकार्ड भी लिया जा रहा है। औषधि प्रशासन के अधिकारी इसके बाद कच्चा माल आपूर्ति कर्ताओं के यहां पहुंचेंगे।

12 बिंदुओं पर दें ध्यान

एफओपीई ने क्षेत्र और प्रदेश के दवा निर्माताओं के लिए दो दिन पहले एक एडवायजरी जारी की है। इसमें 12 बिंदुओं पर ध्यान देकर ही दवा निर्माण करने की हिदायत दी गई है। दवा कंपनियों से कहा गया है कि कच्चे माल की खरीदी और निर्माण में कंपनी के निदेशक खुद निगरानी करें। जिस किसी से दवा निर्माण के लिए कच्चा माल (एपीआइ) खरीदा जा रहा सुनिश्चित करें कि उसके पार ड्रग लायसेंस हो और फार्मा ग्रेड माल हो। कच्चे माल की दवा में उपयोग करने से पहले अपने यहां सैंपलिंग और टेस्टिंग का निर्देश तो दिया है साथ ही संदर्भ के लिए आपूर्ति करने वाले से भी उसके द्वारा करवाई गई टेस्टिंग रिपोर्ट (सीओए) अपने पास रखने के निर्देश दिए हैं।

सारबिटाल और ग्लिसरीन की जांच के आदेश

अफ्रीकी देशों में भारतीय कफ सिरप से बच्चों की मौत के मामलों के बाद सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (सीडीएसओ) ने 14 दिन पहले कफ सिरप के तीन प्रमुख अवयवों प्रापलिन ग्लायकोल के साथ सारबिटाल और ग्लिसरीन की जांच के आदेश दिए हैं। आरोप है कि दवा में अमानक यानी औषधि नियामक के उलट सामान्य रूप से बाजार में उपलब्ध इन तत्वों का उपयोग किया जा रहा है। दरअसल ये तीनों तत्व अन्य उद्योगों में भी उपयोग होते हैं। ग्लिसरीन कास्मेटिक उद्योग से लेकर शराब उद्योग में उपयोग होता है। सारबिटाल मिठास के लिए कन्फेक्शनरी व अन्य खाद्य उद्योगों में इस्तेमाल होता है।

यह है दवा का मानक

दवा के मानक के अनुसार दवा बनाने में काम में आने वाली वस्तुएं इंडियन, ब्रिटिश या यूएस फार्माकोपिया (आइपी, बीपी या यूएसपी) ग्रेड की होना चाहिए। इन मानकों का पालन हो तो ये सभी तत्व ज्यादा परिष्कृत, शुद्ध और मानव हाथों से अनछुए होना चाहिए। लिहाजा आइपी या बीपी ग्रेड के कच्चे माल की कीमत भी ज्यादा होती है।

पड़ताल

अधिकारी जांच के लिए अलग-अलग यूनिटों में जा रहे हैं। दवा निर्माता शासन का सहयोग कर रहे हैं। एफओपीई ने सदस्यों के लिए गाइडलाइन जारी की है, ताकि कहीं कोई चूक की गुंजाइश न रहे। – हिमांशु शाह, अध्यक्ष, फेडरेशन आफ फार्मा आंत्रप्रेन्योर्स

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