शिवराज शासन में शुरू हुई पुलिस जनसुनवाई सुस्त नजर आने लगी है। अफसर जनसुनवाई में खास रुचि नहीं रखते हैं। प्रति मंगलवार आयुक्त कार्यालय में होने वाली जनसुनवाई में एसीपी, एडीसीपी का आना अनिवार्य है। आयुक्त मकरंद देऊस्कर और अतिरिक्त पुलिस आयुक्त मनीष कपूरिया भी आवेदकों को सुनते हैं। अब चुनाव संपन्न होने के बाद जनसुनवाई पुन: शुरू तो हुई मगर वो असर नहीं दिखा। बड़े अफसर आए और चले गए। इक्के-दुक्के अफसर बैठे और टकटकी लगाए 1 बजने का इंतजार करते रहे। इस सुस्ती से आवेदक भी परिचित हो चुके हैं। जनसुनवाई से हताश आवेदक सीधे पुलिस आयुक्त से मिलना चाहते हैं। आलम यह कि जितने लोग जनसुनवाई में पहुंचे उससे ज्यादा आयुक्त के केबिन के बाहर खड़े रहे। डीसीपी कार्यालयों में भी ऐसे दृश्य आम हैं।
सरकार बदल गई… हम भी जाने वाले हैं
साहब के नोटिस लेकर घूम रहे आवेदक
राज्य पुलिस सेवा से भारतीय पुलिस सेवा में आए साहब ने आवेदकों को उलझा दिया। लोग उनके कार्यालय से जारी नोटिस लेकर इस दफ्तर से उस दफ्तर चक्कर लगा रहे हैं। एडीसीपी रहते साहब ने निजी विवादों की जांचें खोल दी। आवेदक-अनावेदक से मिलीभगत कर दोनों पक्षों को नोटिस जारी किए बल्कि कथन भी ले लिए। जैसे ही नए साहब की एंट्री हुई सबसे पहले उन नस्तियों को ठिकाने लगाया जिनमें एडीसीपी रुचि ले रहे थे। दर्जनों आवेदन और नस्तियां संबंधित थानों को भेज दी। गड़बड़ी से अनजान आवेदक वरिष्ठ अफसरों के पास पहुंचे और बताया कि जो नस्ती थाने भेजी उसमें तो एडीसीपी कथन ले चुके थे। उनके पक्ष में रिपोर्ट तैयार कर कायमी करने का आश्वासन मिला था। कुछेक ने यह कहा कि साहब ने स्वयं जांच कर शिकायती आवेदन को नस्तीबद्ध करने का वादा किया था। इन प्रकरणों की डीसीपी स्वयं निगरानी कर रहे हैं।
सुस्त ऊर्जा डेस्क को काम पर लगाया
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.