धार जिले के तिरला ब्लाक में सिकलसेल एनीमिया के सबसे ज्यादा मरीज

धार। धार जिले में एक साल में सिकलसेल एनीमिया को लेकर विकासखंड स्तर पर जांच को लेकर विशेष रूप से प्रकिया की गई। वर्ष 2023 की स्थिति देखें तो जिले में करीब 40413 लोगों का पंजीयन किया गया जबकि जांच 38 हजार 922 लोगों की की गई। इनमें से 1564 लोगों के नमूने जांच के लिए उच्च स्तर पर भेजे गए।

इसमें सिकलसेल एनीमिया के वाहक के रूप में 136 लोग पाए गए हैं जबकि सिकलसेल एनीमिया से ग्रस्त लोगों की संख्या 406 पाई गई है। यह अपने आपमें एक बड़ा आंकड़ा है। क्योंकि सिकलसेल एनीमिया के कारण कई बच्चे जिंदगी गंवा चुके हैं। इसको लेकर केवल जागरूकता ही जिंदगी बचा सकती है। साथ ही समय पर उपचार और अन्य जागरूकता भी बहुत जरूरी है।

राज्यपाल मंगू भाई पटेल के आदेश पर विशेष रूप से जिले में जागरूकता की पहल की जा रही है। राज्यपाल द्वारा इस बीमारी को लेकर जो गंभीरता दिखाई गई है उसी का परिणाम है कि आदिवासी अंचल के लोगों को लाभ मिल रहा है। जिले के तिरला विकासखंड की स्थिति देखें तो यहां पर सबसे ज्यादा 56 करियर यानी वाहक मिले हैं जबकि 234 मरीज यहां पर मिले हैं।

इस तरह से इस बीमारी को लेकर यदि सर्वाधिक चिंता की स्थिति है तो वह धार के समीप के तिरला विकासखंड की है। बता दें कि विकसित भारत संकल्प यात्रा के माध्यम से भी स्क्रीनिंग को लेकर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है कि जो स्वास्थ्य शिविर लगाए जाएंगे, वहां पर इस तरह के लोगों में जागरूकता लाना बेहद जरूरी होगा। सिकलसेल एनीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है।

इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का उपचार बहुत ही मुश्किल भरा होता है। जिले में कई लोग अपनी जान इस बीमारी के कारण गंवा चुके हैं। लगातार खून की कमी होने और उस कारण होने वाली अन्य बीमारियों के कारण बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है। वहीं इस पूरे मामले में देखने में मिला है कि जन जागरूकता होना जरूरी है। यदि जागरूकता का अभाव है तो किस तरह से जिंदगी खतरे में पड़ सकती है, इसके भी उदाहरण देखने को मिले हैं।

जानकारी के अभाव में मेडिकल कालेज में पांच दिन चलता रहा उपचार

धार जिले के आदिवासी अंचल की युवती इंदौर में अध्ययनरत थी। युवती का अचानक स्वास्थ्य खराब हुआ और उसे उपचार के लिए इंदौर के मेडिकल कालेज में भर्ती किया गया। यह मामला करीब चार साल पुराना है।

युवती के हाथ -पैर का दर्द बंद नहीं होने को लेकर लगातार 5 दिन तक इलाज चलता रहा। लेकिन मेडिकल कालेज इंदौर की टीम लगातार परेशान होती रही। इस बीच में जब युवती के पिता को इस बात की जानकारी लगी तो वह सिकलसेल एनीमिया को लेकर बनाए गए कार्ड को लेकर इंदौर पहुंचे।

इसकी जानकारी मेडिकल कालेज के डाक्टर को दी गई। जब डाक्टर को इस बात की जानकारी हुई कि यह सिकलसेल एनीमिया से पीड़ित है। उसका उस तरह से इलाज किया गया और वह कुछ ही दिन में ठीक होकर सामान्य हो गई। सिकलसेल पीड़ित के बारे में खुद मरीज को और उसके स्वजनों को अधिक जानकारी होना चाहिए। वह जानकारी के स्तर में बहुत आगे हैं तो कई बार उपचार में बहुत ही आसानी हो जाती है। साथ ही मरीज को बचाया जा सकता है।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.