इंदौर की रानू चांडलिया बनीं साध्वी सुव्रतयशाश्रीजी, साधु वेश किया धारण

इंदौर। सांसरिक दुनिया की चकाचौंध को छोड़कर इंदौर के लोकनायक नगर की 26 वर्षीय रानू चांडलिया गुरुवार सुबह साध्वी सुव्रतयशाश्रीजी बन गई। दलालबाग में इस घड़ी के साक्षी बनने के लिए सुबह के सर्द मौसम में भी घर के वातानुकूलित कमरे और गर्म चाय की चुस्कियों को छोड़कर सैकड़ों समाजजन जुटे हुए थे। श्वेतांबर जैन साधु और साध्वियों की मौजूदगी में जैसे ही उन्हें नया वेश धारण कर मंच पर लाया गया और उन्हें वैरागी जीवन के लिए नया नाम मिला तो पूरा पंडाल जय जिनेंद्र के जयघोष से गूंज उठा।

नवकार परिवार, दामोदर नगर जैन श्रीसंघ, राजेंद्र ऋषभ फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित दीक्षा महोत्सव गणिवर्य आनंदचंद्र सागर महाराज, मुनि रजतचंद्र विजय और साध्वी प्रज्ञाश्रीजी के मार्गदर्शन में समोशरण पर भगवान महावीर स्वामी को विराजित करने के साथ हुआ। इस अवसर पर परिवार से आज्ञा लेने के बाद मुमुक्षु ने संतों से दीक्षा विधि के संकल्प कराने, मुंडन करने और संयम का वेश प्रदान करने की प्रार्थना की।

दलालबाग में हुए आयोजन में हजारों समाजजन दीक्षा महोत्सव के साक्षी बने।

केशलोचन कर साधु वेश धारण किया

जैसे ही मंचासीन संतों से दीक्षा की आज्ञा प्राप्त हुई, मुमुक्षु खुशी और उल्लास से थिरकने लगी। इस दौरान उन्होंने अपने सांसारिक आभूषण का त्याग किया। साध्वी मंडल के सान्निध्य में केशलोचन कर साधु वेश धारण कराया गया। इस मौके पर सांसारिक पिता पारस जैन और माता अंजु जैन तथा भाई कपिल एवं सचिन ने भी नूतन साध्वी को आत्मकल्याण की राह आगे बढ़ने के लिए विदा किया।

संतों के सान्निध्य ने बदला जीवन

नवकार परिवार के प्रवीण गुरु और महेंद्र गुरु ने बताया कि दीक्षा के निर्णय से पहले मुमुक्षु सीए बनाना चाहती थी, लेकिन पांच साल पहले संतों के सान्निध्य में उसका जीवन बदला। पिता पारस किराना व्यवसायी हैं। संसार की क्षणभंगुरता का ज्ञान होने के बाद मुमुक्षु के मन ही मन वैराग्य के पथ पर चलने की भावना प्रबल हुई थी। परिवार की आज्ञा मिलने में साढ़े तीन साल का समय लगा, लेकिन डेढ़ साल पहले माता-पिता और परिजनों की अनुमति और गुरु की आज्ञा मिलने के बाद आज उनका स्वप्न साकार हुआ। इस मौके पर संगीतकार त्रिलोक मोदी, भरत कोठारी, सुनील श्रीमाल आदि मौजूद थे।

नूतन साध्वी ने कहा- पहले सराफा-छप्पन के खाने में आनंद आता था

साध्वी बनने के अवसर पर मुमुक्षु रानू ने कहा कि जब संसारियों के साथ रहते हैं तो हमें भोग विलास और मौज-मस्ती अच्छी लगती है। युवास्था में तो यह और भी आकर्षित करती है, लेकिन एक बार सद्गुरु मिल जाएं तो जीवन का रंग बदल जाता है। पहले मुझे भी छप्पन दुकान और सराफा जाने में और खाने में आनंद आता था, अब उपवास में आनंद आता है। मैंने अब समझ लिया कि आनंद भोग में नहीं योग में है।

इच्छाओं का त्याग ही संयम

इस मौके पर संबोधित करते हुए गणिवर्य आनंदचंद्र सागर महाराज ने कहा कि इच्छाओं के त्याग का नाम ही संयम है। सर्वजीवों के सुखों की कामना ही संयमी सदा करता है। स्वजनों के मोह-माया को त्याग करके गुरु की आज्ञा स्वीकार करना सयंमी के जीवन लक्ष्य में साक्षी बनता है। साधु जीवन स्व के साथ पर के कल्याण का मार्ग है। साधु के मन सभी के लिए कल्याण की भावना होती है।

परिवार के बीच बेटी नहीं साध्वी बनकर पहुंचेंगी नूतन साध्वी

पांच दिनी दीक्षा महोत्सव का समापन शुक्रवार को नूतन साध्वी के सांसारिक घर लोकनायक नगर में होगा। इस मौके पर उनके पगलिये सुबह 6.30 बजे होंगे। यह पहला मौका होगा जब माता-पिता, भाई-भाभी और नाते-रिश्तेदार के बीच वे घर की बेटी नहीं, बल्कि साध्वी के रूप में पहुंचेंगी। इस मौके पर वे परिजनों को धर्म के पथ पर चलने की महत्ता पर संबोधित करते हुए मांगलिक देंगी।

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