न्यायिक सेवा परीक्षा के लिए एलएलबी के सभी सेमेस्टरों में पहले प्रयास में 70 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य
इंदौर। जनवरी-2024 में होने वाली न्यायिक सेवा परीक्षा की न्यूनतम अर्हताओं को लेकर वकीलों की संस्था न्यायाश्रय ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखा है। इसमें संस्था द्वारा अर्हताओं में संशोधन की मांग की गई है। मालूम हो कि परीक्षा में शामिल होने के लिए अभ्यर्थी को दो अर्हताओं में से किसी एक को पूरा करना अनिवार्य है।
पहली अर्हता तो यह है कि अभ्यर्थी ने एलएलबी के दौरान पहले ही प्रयास में हर सेमेस्टर में न्यूनतम 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों। यानी एक भी सेमेस्टर में अभ्यर्थी को 70 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त हुए तो वह न्यायिक सेवा परीक्षा के लिए पात्र नहीं माना जाएगा, भले ही सभी सेमेस्टरों के अंकों का औसत 70 प्रतिशत से अधिक क्यों न हो। दूसरी अर्हता है कि अभ्यर्थी को इस बात का प्रमाण देना होगा कि वह पिछले तीन वर्षों से वकालात कर रहा है। इसके लिए उसे हर वर्ष के कम से कम छह सारवान (महत्वपूर्ण) निर्णय या आदेश प्रस्तुत करने होंगे, जिसमें उसने पैरवी की हो।
वकीलों ने कहा- यह मुश्किल काम है
वकीलों का कहना है कि दोनों ही अर्हताएं किसी भी जूनियर वकील के लिए पूरी कर पाना लगभग असंभव है। एलएलबी जैसे मुश्किल परीक्षा में हर सेमेस्टर में पहले ही प्रयास में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त कर पाना बहुत मुश्किल है। इसी तरह एलएलबी की डिग्री प्राप्त करने के बाद तीन-चार वर्ष तो जूनियर वकील के रूप में काम करना होता है ताकि कानून की व्यावहारिक दिक्कतों को समझा जा सके। किसी भी जूनियर वकील के लिए तीन वर्ष तक हर वर्ष के छह सारवान आदेश या निर्णय अपने नाम से करवा पाना संभव नहीं।
जूनियर के साथ सीनियर वकील भी कर रहे विरोध
मप्र हाई कोर्ट ने व्यवहार न्यायाधीश वर्ग दो के 138 पदों के लिए होने वाली प्रारंभिक परीक्षा के लिए 17 नवंबर को विज्ञापन जारी किया है। इसमें अभ्यर्थी के लिए एलएलबी की डिग्री की न्यूनतम अर्हता के साथ-साथ इसमें दो अर्हताओं में से किसी एक को पूरा करना भी अनिवार्य किया गया है। विरोध इन अर्हताओं को लेकर ही है। जूनियर ही नहीं, सीनियर वकीलों का भी कहना है कि इन अर्हताओं की वजह से 90 प्रतिशत से ज्यादा वकील प्रारंभिक परीक्षा में शामिल ही नहीं हो सकेंगे।
पांच वर्ष पहले देना थी जानकारी
वकीलों का यह भी कहना है कि अगर इन अर्हताओं को लागू ही करना था तो कम से कम पांच वर्ष पहले से इसकी जानकारी दी जानी चाहिए थी ताकि एलएलबी की पढ़ाई के दौरान ही विद्यार्थी इस बात का ध्यान रखते कि उन्हें न्यायिक सेवा में जाना है तो कम से कम प्रत्येक सेमेस्टर में 70 प्रतिशत अंक लाने होंगे।
कोविड ने दो वर्ष तक नहीं होने दिया कामकाज
वकीलों का कहना है कि कोविड काल में करीब दो वर्ष तक तो न्यायालय में नियमित कामकाज ही नहीं हुआ। वर्चुअल सुनवाई में वे ही वकील पैरवी कर सके जो पहले से प्रैक्टिस में थे और जिन्हें लोग जानते-पहचानते थे। नए वकीलों के लिए घर में बैठे-बैठे पक्षकारों को तलाशना संभव नहीं था। ऐसी स्थिति में जूनियर वकील तीन वर्ष के छह सारवान निर्णय या आदेश कहां से लाएंगे।
नैतिक रूप से अनुचित
सिविल जज परीक्षा के लिए नियत की गईं अर्हताएं हजारों छात्र-छात्राओं को परीक्षा देने से वंचित कर रही हैं। ये तार्किक एवं नैतिक रूप से अनुचित हैं। परीक्षा देने का अधिकार प्रत्येक छात्र-छात्रा को होना चाहिए। हमने अर्हताओं में संशोधन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र भी लिखा है। – पंकज वाधवानी, अध्यक्ष संस्था न्यायाश्रय
व्यावहारिक रूप से सही नहीं
दोनों ही अर्हताओं में संशोधन किया जाना चाहिए। यह व्यावहारिक रूप से सही नहीं है। किसी भी एलएलबी के विद्यार्थी के लिए पहले ही प्रयास में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त करना बहुत मुश्किल है। – दिलीप सिसौदिया, वरिष्ठ अभिभाषक
ज्यादातर वकील बाहर हो जाएंगे
इस तरह की अर्हताएं लागू करने के कम से कम पांच वर्ष पहले से सूचना दी जाना चाहिए थे। कोविड काल में किसी भी जूनियर वकील के लिए छह सारवान आदेश या निर्णय अपने नाम से करवा पाना मुश्किल है। इससे ज्यादातर वकील परीक्षा से बाहर हो जाएंगे। – सौरभ मिश्रा, एडवोकेट
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