आर्थिक तंगी और कर्ज से हो गए हैं परेशान, तो गुरुवार के दिन करें गुरु कवच का पाठ

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा ।

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ॥

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे ।

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ॥

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा ।

संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ॥

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः ।

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ॥

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु ।

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ॥

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः ।

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ॥

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः ।

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ॥

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।

वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ॥

गुरु बीज मंत्र

ॐ बृं बृहस्पतये नम:।।

ऊं गुं गुरुवाये नम:।।

पौराणिक मंत्र

ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरु कांचन संन्निभम्।

बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्” ।।

गुरु मंत्र

“ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:॥”

“ॐ गुं गुरवे नम:॥”

“ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:॥”

“ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये नमः

गुरू गायत्री मंत्र

“ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्” ।।

गुरू वैदिक मंत्र

ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।

यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।

तांत्रिक मंत्र

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः”।

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