भोपाल। मरीजों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश में खोले गए जन औषधि केंद्रों की हालत ठीक नहीं है। केंद्रों में 1900 तरह की दवाएं रखने की व्यवस्था है, लेकिन दवाएं एक्सपायर होने के डर से अधिकतर केंद्र संचालक 200 से 400 तरह की दवाएं ही रखते हैं।
केंद्र में एक्सपायर हो चुकी दवाएं कंपनी को वापस करने की व्यवस्था नहीं है। उसके बदले में संचालकों को दो प्रतिशत अतिरिक्त कमीशन मिलता है। इस कारण केंद्र संचालक वही दवाएं रखते हैं जो उनके यहां अधिक बिकती हैं। ऐसे में मरीजों को मजबूरी में दूसरी दुकानों से ब्रांडेड दवाएं खरीदनी पड़ती हैं।
मरीजों को नहीं मिल पा रहा लाभ
कुछ दुकान संचालक तो जन औषधि केंद्रों में ब्रांडेड दवाएं भी बेच रहे हैं जिसकी अनुमति नहीं है। इतना ही नहीं 290 प्रकार के सर्जिकल सामान भी अब जन औषधि केंद्रों के लिए स्वीकृत हैं, पर अधिकतर दुकानों में 50 भी नहीं मिल पा रहे हैं। इक्का-दुक्का सामन मिलता भी है, पर मरीज एक ही जगह से लेना चाहते हैं। इस कारण मरीजों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
कई जिलों में एक या दो केंद्र
मध्य प्रदेश में कुल 302 जन औषधि केंद्र हैं। इनमें कुछ जिलों में तो एक या दो ही हैं, जिससे मरीजों को दवाएं खरीदने में मुश्किल होती है। सबसे ज्यादा 72 केंद्र इंदौर में हैं। 17 जिलों में एक या दो केंद्र ही चल रहे हैं, वहां भी सभी दवाएं नहीं मिल पातीं। दूसरी बात यह कि इतने केंद्र होने के बाद भी प्रदेश में कोई वितरण केंद्र ही नहीं है। यहां के केंद्र संचालकों को रायपुर से दवाएं मंगानी पड़ती हैं। दवाएं आने में पांच से सात दिन लग रहे हैं।
ब्रांडेड की तुलना में सस्ती होती हैं जेनरिक दवाएं
बता दें कि केंद्र संचालकों को 20 प्रतिशत कमीशन मिलता है। इसकी निगरानी रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय का फार्मास्युटिकल एवं मेडिकल डिवाइसेस ब्यूरो आफ इंडिया (पीएमबीआइ) करता है। इन केंद्रों में जेनरिक दवाएं मिलती हैं जो ब्रांडेड की तुलना में 100 से 300 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं।
पीएमबीआइ का दावा है कि गुणवत्ता में यह दवाएं ब्रांडेड से कम नहीं होतीं। पीएमबीआइ के एक अधिकारी ने बताया कि लगभग 300 तरह की दवाएं वा सर्जिकल सामान और इसमें जुड़ने जा रहे हैं, जिनकी दरें निर्धारित करने की प्रक्रिया चल रही है। हालांकि, केंद्रों की बदहाली पर कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है।
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