उज्जैन। पंचांग की गणना के अनुसार 16 दिसंबर को दोपहर 4 बजकर 5 मिनट पर सूर्य वृश्चिक राशि को छोड़कर धनु राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य का धनु राशि में प्रवेश धनुर्मास कहलाता है। सामान्य बोलचाल में हम इसे खरमास या मलमास के नाम से जानते हैं। धर्नुमास 16 दिसंबर से 15 जनवरी तक एक माह रहेगा। इस एक माह में विवाह आदि मांगलिक कार्यों पर विराम रहेगा।
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया शास्त्रों में धनुर्मास के दौरान भगवत भजन, तीर्थाटन और भागवत श्रवण का विशेष महत्व बताया गया है। 16 दिसंबर से 16 जनवरी पर्यंत विवाह, यज्ञोपवीत, गृह वास्तु आदि निषेध माने जाते हैं अर्थात इस दौरान इस प्रकार के कार्य वर्जित बताए गए हैं। मकर संक्रांति से पुनः विवाह यज्ञोपवीत आदि के मुहूर्त आरंभ हो जाएंगे।
हर माह एक राशि में परिभ्रमण करते हैं सूर्य
वर्षभर में सूर्य देवता बारह राशियों में परिभ्रमण करते हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रांति कहलाता है। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इस दिन को हम मकर संक्रांति कहते हैं। मकर से पहले सूर्य का धनु राशि में प्रवेश होता है, जो सूर्य की धनु संक्रांति अर्थात धनुर्मास कहलाता है।
धनु संक्रांति सूर्य के दक्षिणायन का अंतिम भाग है। इसके अगले महीने सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसे सूर्य का उत्तरायण कहा जाता है। सूर्य के उत्तरायण के छह माह शुभ मांगलिक कार्यों के लिए विशेष शुभ माने जाते हैं।
तीर्थ यात्राओं का पांच गुना पुण्य फल
धनु संक्रांति के अंतर्गत धार्मिक यात्राओं का विशेष महत्व है। क्योंकि इसी दौरान शारीरिक अक्षमता ठंड आदि से संबंधित विपरीत स्थिति सामने आती है। इसी दौरान नदी के तट पर पूजन और स्नान का महत्व बताया गया है। क्योंकि यह भी एक प्रकार की कठिन साधना का ही भाग माना जाता है।
धनुर्मास की संक्रांति के दौरान धार्मिक यात्राओं पर किए गए धार्मिक कार्य जिसके अंतर्गत जाप, भजन, दान आदि पुण्य की वृद्धि वाले माने जाते हैं। खास खास पर्व भी इसी मास में धनुर्मास में मोक्षदा एकादशी, हनुमान अष्टमी, दत्तात्रय जयंती आदि पर्व आते हैं, जो विशेष पुण्य देने वाले बताए गए हैं। अर्थात इस दौरान व्रत आदि धार्मिक कार्य करने से अनुकूलता तथा पारिवारिक सुख शांति की प्राप्ति होती है।
नेत्रों के विकार से मुक्ति के लिए विशेष माह
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नेत्रों का कारक व आत्मा का कारक सूर्य को बताया गया है। कृष्ण यजुर्वेदीय सिद्धांत के अनुसार की इस दौरान भगवान सूर्य नारायण को उदय काल के समय जल अर्पित करने तथा नेत्र उपनिषद के पाठ से नेत्र या आंखों से संबंधित समस्याओं का निराकरण होता है। साथ ही आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.