सोहागपुर (नर्मदापुरम)। यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल मध्यप्रदेश का सतपुड़ा टाइगर रिजर्व प्राकृतिक सौंदर्य की और बाघों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है तो वहीं इतिहास का खजाना संजोये हुए हैं। यह खजाना भी धीरे-धीरे सामने आ रहा है। इन दिनों सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में मांसाहारी और शाकाहारी वन्य प्राणियों की गणना की जा रही है।
गणना दल को करीब दस हजार वर्ष पुराने शैल चित्र मिले हैं। सोमवार 27 नवंबर को पनारा मैंप में गणना कर रहे बिहार से आए प्रशिक्षु वन रक्षक रोहित कुमार, बाली ढीकू, वालेंटियर विनय सराठे की टीम को 274 कक्ष क्रमांक पनारा बीट में एक पहाड़ी पर बनी राक पेंटिंग देखने को मिली।
शैल चित्र प्रागैतिहासिक काल के हैं
शासकीय नर्मदा महाविद्यालय की प्राध्यापक व इतिहास की व्याख्याता डा. हंसा व्यास ने बताया कि सतपुड़ा की वादियों व पहाड़िया के पास जो शैल चित्र मिले हैं वे प्रागैतिहासिक काल लगभग दस हजार वर्ष पुराने प्रतीत हो रहे हैं। इतिहास की गणना अनुसार मध्याश्म काल ईसा पूर्व 2500 से लेकर आठ हजार वर्ष तक का माना जाता है। इसे मेसालिथिक काल भी कहा जाता है। चित्रों की शैली और विषय वस्तु के आधार पर यह प्रागैतिहासिक काल के माने जा सकते हैं।
सतपुड़ा में आज भी मिलते हैं कई सालों के प्रमाण
सतपुड़ा की वादियों में पहड़ियों पर ऊकेरी गई राक पेंटिंग में जंगल में रहने वाले लोगों के जन जीवन को दर्शाया गया है। वर्षों पहले जीवन किस तरह का होता था। पहले जो लोग रहते थे वो हाथी, घोड़े की सवारी करते थे। हाथ में भाला, बरछी, तीर कमान लेकर जानवरों का शिकार किया करते थे। चूरना गुंदी में जो राक पेंटिंग हैं वह सबसे ज्यादा साफ और सुन्दर हैं उसमें हाथी घोड़े पर बरात को दर्शाया गया हैं। ज्यादातर पेंटिंग में शिकार करते हुए दिखाया गया हैं।
भीमबैठिका में हैं तीस हजार पुराने शैल चित्र
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र से करीब पचास किमी दूर विश्व संरक्षित भीमबैठिका के शैलाश्रय व शैलचित्र मौजूद हैं। यहां के शैलचित्रों को लगभग तीस हजार पुराना माना जाता है। प्रागैतिहासिक काल में नर्मदा नदी के उत्तर की ओर जहां भीमबैठिका में आदि मानव शैलाश्रम में निवास करते थे वहीं दक्षिण की ओर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व अंतर्गत पचमढ़ी तथा धूपगढ़ की प्राचीन गुफाओं को आदि मानव का निवास माना जाता है।
सतपुड़ा के जंगलों में जो शैल चित्र मिले हैं वह दस हजार साल पुराने होने की संभावना है। उत्तर पाषाण काल की राक पेंटिंग में भाले व धनुष बाण के साथ की आकृतिक मिलती है। चित्र में हथियार का आकार व पकड़ने का तरीका भिन्न हो सकता है। – डा नारायण व्यास, वरिष्ठ पुरातत्वविद व पूर्व पुरातत्व अधीक्षण
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