बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि पेंशन एक बुनियादी अधिकार है और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को इसके भुगतान से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि ये उनके लिए आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है। अदालत ने एक व्यक्ति की सेवानिवृत्ति के बाद दो साल से अधिक समय तक उनका बकाया रोके रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने 21 नवंबर को कहा कि ऐसी ‘‘स्थिति पूरी तरह से अतार्किक है।”
अदालत जयराम मोरे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो 1983 से सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में ‘हमाल’ (कुली) के रूप में काम करते थे। याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र सरकार को उसकी पेंशन राशि जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि मोरे ने सराहनीय और बेदाग सेवा दी है, लेकिन फिर भी उनकी सेवानिवृत्ति (मई 2021) से दो साल की अवधि के लिए तकनीकी आधार पर उन्हें पेंशन का भुगतान नहीं किया गया।
मोरे ने अपनी याचिका में दावा किया कि विश्वविद्यालय द्वारा राज्य सरकार के संबंधित विभाग को सभी आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बावजूद पेंशन का भुगतान नहीं किया जा रहा है। पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा कार्यवाही की शुरुआत से, हम सोच रहे थे कि कोई भी व्यक्ति जो लंबी बेदाग सेवा के बाद सेवानिवृत्त होता है, क्या उसे लगभग 30 वर्षों की लंबी सेवा प्रदान करने के बाद ऐसी दुर्दशा का सामना करना चाहिए और पेंशन के मूल अधिकार से वंचित किया जाना चाहिए, जो उसके लिए आजीविका का एकमात्र स्रोत है।”
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