गले मिलकर कलंगी और तुर्रा में होता है युद्ध, जिसके हिंगोट पहले खत्म वो विजेता

इंदौर। दीपावली के दूसरे दिन इंदौर के करीब गौतमपुरा में होने वाला हिंगोट युद्ध अब पूरे देश में प्रसिद्ध हो चुका है। यहां आज कलंगी और तुर्रा सेना के योद्धा एक-दूसरे पर सुलगते हुए हिंगोट से वार करेंगे। बड़ी संख्या में लोग इस युद्ध को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं। हिंगोट के लगने से युद्ध लड़ रहे लोगों सहित कई बार दर्शक भी घायल हो चुके हैं।

इंदौर से करीब 50 किमी दूर गौतमपुरा में होने वाले इस हिंगोट युद्ध की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी बताई जाती है। इसमें युद्ध लड़ने वालों का मकसद एक दूसरे को नुकसान पहुंचाना नहीं बल्कि खेल की भावना होती हैं। इस बात का कोई भी प्रमाण अभी तक नहीं मिला है कि हिंगोट युद्ध कब से शुरू हुआ और इसने एक परंपरा का रूप ले लिया। मान्यता है कि मुगलों के हमले के जवाब में मराठा सेना इसी तरह से युद्ध करती थी।

कभी विवाद नहीं हुआ

कलंगी सेना और तुर्रा सेना के बीच होने वाले हिंगोट युद्ध में कभी भी दोनों दलों के बीच कोई विवाद नहीं हुआ। सबसे खास बात यह है कि इस युद्ध की शुरुआत किसी खेल की तरह गले लगकर होती है। हिंगोट युद्ध में घायल होने वालों की मदद के लिए दोनों दलों के लोग हमेशा मौजूद रहते हैं।

गौतमपुरा और रूणजी गांव के योद्धा

हिंगोट युद्ध में तुर्रा सेना गौतमपुरा के योद्धाओं की होती है और कलंगी सेना रूणजी गांव के योद्धाओं की। दोनों सेनाओं के योद्धा अपने साथ एक थैली लटकाए रहते हैं, जिसमें हिंगोट रखे होते हैं। फिर वे इसे जलाकर दूसरी सेना की ओर फेंक देते हैं। सबसे पहले जिसके हिंगोट खत्म हो जाते हैं वहीं युद्ध जीत जाता है।

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