इंदौर। छठ पूजा को महापर्व कहा जाता है। यह पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित है। इस त्योहार को लोग बड़ी आस्था के साथ मनाते हैं। दिवाली के बाद से ही छठ पर्व के लिए तैयारियां शुरू हो जाती हैं। इस त्योहार के दौरान व्रती 36 घंटे तक बिना पानी के व्रत रखती हैं। किसी भी अन्य त्योहार में इतना लंबा व्रत नहीं रखा जाता है। छठ पूजा की शुरुआत चार दिवसीय नहाय खाय से होती है। छठ पूजा में षष्ठी माता और सूर्य देव की पूजा की जाती है। इस पर्व को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। आइए, पंडित आशीष शर्मा के अनुसार जानें छठ पर्व कब से शुरू हो रहा है।
इस दिन से शुरू होगा छठ पर्व
छठ पूजा हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। इस बार छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर को अमृत योग और रवियोग से हो रही है। छठ पूजा के दौरान नदी के किनारे भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। छठ पूजा संतान प्राप्ति या संतान के सुखी जीवन के लिए की जाती है। इस साल छठ पूजा पर विशेष संयोग बनेगा। रविवार को भगवान सूर्य का दिन माना जाता है और पहला अर्घ्य रविवार को पड़ रहा है, जो बेहद शुभ होगा।
नहाय खाय विधि
नहाय खाय के साथ चार दिवसीय छठ पूजा उत्सव की शुरुआत होती है। इस साल यह 17 नवंबर को पड़ेगा। इस दिन से ही घर में पवित्रता का ध्यान रखा जाएगा। लहसुन और प्याज का सेवन वर्जित होता है। नहाय खाय के दिन व्रती सहित परिवार के सभी सदस्य कद्दू, चने की दाल, मूली, चावल आदि का सेवन करते हैं। खरना 18 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन गुड़ और खीर का प्रसाद बनाकर खाया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं। इस प्रसाद को बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का उपयोग किया जाता है।
ठेकुवा का प्रसाद
19 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, जिसे संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है। चौथे दिन यानी 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दौरान व्रती सूर्य देव से सुख-शांति के लिए प्रार्थना करती हैं। पारण सुबह के अर्घ्य के बाद होता है। इसके साथ ही यह पर्व समाप्त हो जाएगा। छठ पूजा का मुख्य प्रसाद केला और नारियल है। इस पर्व के महाप्रसाद को ठेकुवा कहा जाता है। यह ठेकुवा आटा, गुड़ और शुद्ध घी से बनता है, जो काफी मशहूर है।
डिसक्लेमर
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