एक बार बादशाह नौशेरवां भोजन कर रहे थे। अचानक खाना परोस रहे बावर्ची के हाथ से थोड़ी सी सब्जी बादशाह के कपड़ों पर छलक गई। बादशाह की त्यौरियां चढ़ गईं।
जब बावर्ची ने यह देखा तो वह थोड़ा घबराया, लेकिन कुछ सोचकर उसने प्याले की बची सारी सब्जी भी बादशाह के कपड़ों पर उड़ेल दी। अब तो बादशाह के क्रोध की सीमा न रही। उसने बावर्ची से पूछा, ‘तुमने ऐसा करने का दुस्साहस कैसे किया?’
बावर्ची ने अत्यंत शांत भाव से उत्तर दिया, ‘जहांपना ! पहले आपका गुस्सा देखकर मैनें समझ लिया था कि अब जान नहीं बचेगी। लेकिन फिर सोचा कि लोग कहेंगे की बादशाह ने थोड़ी सी गलती पर एक बेगुनाह को मौत की सजा दी। ऐसे में आपकी बदनामी होती होती। तब मैनें सोचा कि सारी सब्जी ही उड़ेल दूं। ताकि दुनिया आपको बदनाम न करे। और मुझे ही अपराधी समझे।’
नौशेरवां को उसके जबाव में इस्लाम के गंभीर संदेश के दर्शन हुए और पता चला कि सेवक भाव कितना कठिन है। इस तरह बादशाह ने बावर्ची को जीवनदान दे दिया।
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