इस समय भगवान शिव का प्रिय महीना सावन चल रहा है। हिंदू धर्म में सावन महीने का बहुत महत्व है। इस महीने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं। इस दौरान शिवलिंग की पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत भी रखा जाता है। साल 2004 के बाद अब इस बार सावन के महीने में दो शिवरात्रि मनाने का मौका मिल रहा है। पौराणिक कथा के अनुसार शिवलिंग की पूजा करने का महत्व समस्त ब्रह्माण्ड की पूजा करने के बराबर माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई और शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता है। आइए, जानें।
शिवलिंग की उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसे खुद भगवान शिव ने सृष्टि की रचना से पहले सौ करोड़ श्लोकों से बनी पुराण में बताया है। शिव पुराण को द्वापर युग में महर्षि वेदव्यास जी ने इसे 18 भागों में बांटा। शिव का अर्थ है परम कल्याणकारी और लिंग का अर्थ सृजन। वहीं, संस्कृत में लिंग का अर्थ है प्रतीक। इस तरह शिवलिंग का अर्थ है शिव का प्रतीक।
ऐसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि की रचना होने के बाद भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच इस बात पर विवाद हुआ था कि कौन सबसे शक्तिशाली है। तभी आकाश में एक चमकीला पत्थर नजर आया और आकाशवाणी हुई कि जो सबसे पहले इस पत्थर का अंत ढूंढ लेगा, वहीं शक्तिशाली कहलाएगा। दोनों ही इस पत्थर का अंत ढूंढने के लिए गए तो उन्हें कुछ पता नहीं चला। दोनों इस चमकते हुए पत्थर के पास थक कर वापस आ गए। तभी आकाशवाणी होती है कि मैं शिवलिंग हूं, मेरा ना कोई अंत है और ना शुरुआत, फिर वहां भगवान शिव का आगमन हुआ।
शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता है?
समुद्र मंथन के दौरान विष की उत्पत्ति हुई थी, जिससे समस्त ब्रह्माण्ड को बचाने के लिए भगवान शिव ने इसे ग्रहण कर लिया था, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। इसी कारण भगवान भोलेनाथ को नीलकंठ भी कहा जाता है। विष को ग्रहण करने के बाद शिव जी के शरीर में दाह बढ़ गया। उस दाह को शांत करने के लिए ही उन पर जल अर्पण किया गया, जो परंपरा अब भी चली आ रही है।
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