भिंड। भिंड जिला मिलावटी (सिंथेटिक) दूध की मंडी बन गया है। यहां के 50 से ज्यादा गांवों में रोजाना 2 लाख लीटर नकली दूध तैयार किया जाता है, जो मिश्रित दूध के नाम पर जिले से बाहर खपाने के लिए भेजा जाता है। यहां बता दें कि जिलेभर में 1 लाख 45 हजार 695 पशु धन हैं। इनसे रोजाना 5 लाख 62 हजार 926 किग्रा लीटर दूध का उत्पादन होता है।
भिंड जिले में रोजाना की खपत करीब 6.25 लाख किग्रा लीटर है। ऐसे में जिले में ही करीब 62 हजार किग्रा लीटर मिलावटी दूध रोजाना खपाया जा रहा है। विशेषज्ञों ने इस दूध को बेहद खतरनाक बताया है। इससे आंत का कैंसर, लिवर और किडनी खराब होने का खतरा बताया है। यह पूरा खेल पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे होता है।
डेयरियों में ऐसे बना रहे नकली दूध
क्रीम निकालने के बाद बचे दूध में पानी मिलाया जाता है। दूध को सफेद करने के लिए डिटरजेंट मिलाया जाता है। दूध में वसा बढ़ाने के लिए रिफाइंड तेल मिलाया जाता है। मिठास के लिए ग्लूकोज पाउडर मिलाते हैं। फेट बढ़ाने के लिए नाइट्रोक्स नामक केमिकल डाला जाता है। बाद में इसे मशीन से अच्छी तरह मिलाते हैं। इस तरह से नकली दूध बनकर तैयार हो जाता है।
75 फीसदी फायदे के लालच में खिलवाड़
ग्रामीण इलाकों से डेयरी पर 35 से 40 रुपये लीटर के भाव में दूध भेजा जाता है। सिंथेटिक दूध बनाने का खर्च बमुश्किल 10-15 रुपये आता है। इस तरह डेयरियों से टैंकरों में भरकर दूध को बाहर भेजा जाता है तो उन्हें 1 लीटर दूध पर 25 रुपये तक मुनाफा होता है। इस तरह से 2 लाख लीटर नकली दूध से रोजाना 50 लाख रुपये का मुनाफा होता है। एक किलो मावा या पनीर महज 90 रुपये में तैयार हो जाता है। बाजार में इसकी कीमत 175-200 रुपये किलो तक मिल जाती है। इस तरह इसमें दोगुना मुनाफा मिलता है। बाहर से मांग ज्यादा होने और सख्त कार्रवाई नहीं होने से नकली दूध, मावा और पनीर बनाने का काम चल निकला है।
आगरा-दिल्ली में भिंड के दूध की डिमांड
भिंड के नकली दूध और मावा की डिमांड आगरा उत्तरप्रदेश के अलावा दिल्ली में सबसे ज्यादा है। यहां नकली दूध के जरिए घी तैयार कर देशभर में भेजा जाता है। मावा का उपयोग इन शहरों में स्थानीय स्तर पर खपाने के लिए किया जाता है। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ त्योहारी सीजन को चुना जाता है। इस दौरान खाद्य सुरक्षा अधिकारी नाम के लिए कार्रवाई करते हैं। रिकार्ड तैयार कर मुख्यालय भेजा जाता है। इसके बाद सालभर मिलावट का खेल बेरोकटोक जारी रहता है।
जांच रिपोर्ट आने में देरी का उठाते हैं फायदा
त्योहारों पर मांग की तुलना में आपूर्ति नहीं होने से कारोबारी फायदा उठाते हैं। मिलावटी दूध, मावा व मिठाई बाजार में बिकने लगती है। खाद्य सुरक्षा विभाग सैंपल लेता है, लेकिन जांच रिपोर्ट आने में 15 दिन से ज्यादा लगते हैं। तब तक तक त्योहार की खरीदी खत्म हो जाती है। खाद्य सुरक्षा अधिकारी रीना बंसल के मुताबिक व्यक्ति मावे की मिलावट की पहचान खुद ही कर सकते हैं। खरीदते समय थोड़ा सा मावा हथेली पर मसलकर व चखकर जांच सकते हैं। स्वाद मीठा लगे तो मावा शुद्घ है। यदि रिफाइंड ऑइल, आलू, गुलकंद या वनस्पति घी का स्वाद आता है तो समझें मिलावटी है।
ऐसे बनाया जाता है नकली मावा
मावा बनाने में सिंथेटिक दूध, मैंदा, वनस्पति घी, आलू और आरारोट की मिलावट की जाती है। जांचने के लिए मावा पर फिल्टर आयोडीन की दो-तीन बूंद डालें। यदि मावा काला पड़ जाए तो समझ लें कियह मिलावटी है। मावा चखने पर थोड़ा कड़वा व रबेदार महसूस हो तो वनस्पति घी की मिलावट है। उगलियों से मसल कर देखें। यदि दानेदार है तो मिलावटी हो सकता है।
नकली दूध की जांच इस तरह करें
आधा कप दूध में आधा कप पानी मिलाएं। झाग निकले तो समझे डिटर्जेंट मिला है। नकली दूध का स्वाद अच्छा नहीं होता। दूध उंगलियों के बीच रगड़ें साबुन जैसा लगे तो सिंथेटिक दूध हो सकता है। दूध गर्म करने पर पीला हो जाए तो भी यह सिंथेटिक दूध हो सकता है। दूध की थोड़ी मात्रा किसी सतह पर डालें, यदि दूध लकीर बनाते हुए फैले तो उसमें पानी ज्यादा है।
यहां बनता है नकली दूध-मावा
शहर में हाउसिंग कालोनी, कृष्णा टाकीज के पास, अटेर रोड, चरथर, नुन्हाटा, जामना, बाराकलां, रेलवे स्टेशन के पास, उदोतपुरा, मुरलीपुरा, जावसा, मसूरी, बवेड़ी, दबोह एवं ग्वालियर रोड पर कई जगह तैयार होता है। अटेर में विजयगढ़, बगुली, इंगुरी, नरसिंहगढ़, पावई, सियावली, पारा, बड़पुरा, रिदौली, निवाड़ी, चौम्हों, कनेरा, ऐंतहार रोड पर तैयार होता है। फूफ में भदाकुर रोड, अटेर रोड, सुरपुरा, कोषण, बरही, चांसड़ में बनता है। दबोह में बरथरा, कसल, रुरई, देवरी, विश्नपुरा सहित 10 गांवों में नकली दूध मावा बनता है।
यहां से रोजाना 50 डलिया मावा बस के जरिए झांसी उत्तरप्रदेश भेजा जाता है। गोहद के बिरखड़ी, जैतपुरा, भगवासा आदि गांवों में नकली दूध और मावा बनाया जाता है। मेहगांव के नुन्हाड़, बीसलपुरा सहित एक दर्जन गांवों में नकली दूध और मावा का कारोबार हो रहा है। गोरमी में सुनारपुरा, प्रतापपुरा सहित आधा दर्जन स्थानों पर नकली दूध बनाया जा रहा है। मौ में करीब एक दर्जन स्थानों पर नकली दूध मावा बन रहा है। यहां रोजाना 25 क्विंटल मावा बनता है। ऊमरी में रोजाना करीब 50 क्विंटल मावा बन रहा है।
नकली दूध से यह होता है नुकसान
– नकली और मिलावटी दूध से पेट संबंधी बीमारियां होती हैं।
– मिलावटी दूध से लिवर और किडनी पर असर पड़ता है। लिवर-किडनी खराब हो सकती हैं।
– शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है।
– आंखों पर केमिकल का बुरा असर होता है। इससे रोशनी कम होती है और अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं।
जिले में मिलावटी खाद्य सामग्री पर अंकुश लगाए जाने को लेकर संबंधित विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया जाएगा। साथ ही मिलावट करने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। – डा सतीश कुमार एस, कलेक्टर
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