जिस तरह से सीधी के पेशाब कांड ने तूल पकड़ा, उससे भी अधिक तेजी से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डैमेज कंट्रोल करके सबको चौंका दिया। वीडियो सामने आते ही मुख्यमंत्री और उनकी टीम इसकी गंभीरता को समझ गई थी। विपक्ष इसे तूल देकर बवाल रच पाता, उससे पहले ही मुख्यमंत्री ने सबके सामने आकर कार्रवाई के आदेश दिए। अगले ही दिन पीड़ित को अपने घर पर बुलाकर सम्मान दिया और माफी मांगी, उसके बाद कांग्रेस के पास करने को कुछ नहीं रह गया था। रही सही कसर आरोपित के अवैध निर्माण पर गरजे बुलडोजर ने पूरी कर दी। अब तो पीड़ित ने खुद ही कह दिया कि आरोपित को सजा मिल गई, उसे छोड़ दिया जाए। हालांकि कांग्रेस अभी इसे मुद्दा बनाने में जुटी है। तीसरी शक्ति की प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। चुनाव करीब हैं तो राजनीति की चालें पेशाब कांड के बहाने खूब चली जाएंगी, लेकिन असर हो पाएगा क्या?
ये हैं संस्कारधानी के सरकारी धनकुबेर
संस्कारधानी की संस्कारगर्भा भूमि में कई धनकुबेर भी पल्लवित और पुष्पित हो रहे हैं। हालांकि ये वे सरकारी धनकुबेर हैं जो जन्म से सोने-चांदी की चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए थे। इन्हें इनके सरकारी ओहदे ने दोनों हाथों से सरकारी खजाने और आम आदमी की संपत्ति लूटने का मौका जो दे दिया था। ऐसे कई चेहरे यहां सामने आ चुके हैं। दो-चार महीने में कोई न कोई ऐसा रणबांकुरा निकल ही आता है। अब जबलपुर में लंबे समय तक पदस्थ रहे खाद्य सुरक्षा अधिकारी अमरीश दुबे का नाम सामने आया है। शिकंजा कसने वाली एजेंसी ईओडब्ल्यू के अधिकारियों की आंखें भी खुली रह गई हैं। उसके पास आय से छह सौ प्रतिशत अधिक संपत्ति मिली है। वैसे इस तरह की कार्रवाईयां दो-चार दिन की सुर्खियां पाकर ठंडी पड़ जाती हैं। सवाल यही है कि ये खाद्य सुरक्षा अधिकारी अपने अंजाम तक पहुंचेगा या इसे भी किसी की सुरक्षा मिल जाएगी?
अब जमीन कांड… और भी हैं घेरे में
पेशाब कांड के बाद आदिवासियों से जुड़ा एक और मामला आने वाले दिनों में चर्चित होने वाला है। वो है जमीन कांड। इसमें कई आईएएस की गर्दन फंस सकती है। हालांकि चार अधिकारियों आबकारी आयुक्त ओपी श्रीवास्तव, ग्वालियर संभागायुक्त दीपक सिंह और उप सचिव बसंत कुर्रे के विरुद्ध प्रकरण दर्ज हो चुका है लेकिन चुनाव के ऐन मौके पर ऐसा मामला कई सवाल खड़े कर रहा है। दरअसल, आदिवासी अपनी जमीन केवल आदिवासी को ही बेच सकता है, किसी सामान्य वर्ग के व्यक्ति को नहीं। अगर बेचता है तो कलेक्टर ही अनुमति देगा। इस मामले में जबलपुर में ऐसा नहीं हुआ। कलेक्टर ने यह अधिकार एडीएम को दे रखे थे। बस, यहीं से गड़बड़ी शुरू हुई। कायदे से तो ये अधिकार देने वाले कलेक्टरों को भी घेरे में लिया जाना चाहिए लेकिन लोकायुक्त की नजर अभी तक उस दौरान पदस्थ रहे साहबों तक नहीं पहुंची है। क्या पहुंचने दी जाएगी?
महाकोशल प्रियंका तो विंध्य का मोर्चा राहुल के पास?
बीते महीने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने महाकोशल के जबलपुर से पार्टी के विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत की थी। अब पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी विंध्य से कांग्रेस के प्रचार का बिगुल बजाने वाले हैं। इतना तय है कि प्रदेश की सत्ता का रास्ता महाकोशल और विंध्य से ही होकर गुजरेगा। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जहां महाकोशल में 24 सीटें जीतकर आगे रही थी, वहीं विंध्य में उसे महज सात सीटें ही मिली थीं। इसलिए कांग्रेस की योजना महाकोशल से अधिक विंध्य पर फोकस करने की है। इसी के चलते राहुल गांधी को लाया जा रहा है जो जल्दी ही इस इलाके में बड़ी सभा को संबोधित कर सकते हैं। अभी हाल ही में सीधी का पेशाब कांड सामने आया है। ऐसे में कोशिश है कि सभा जल्दी करवाकर इस मामले को जिंदा रखा जाए। शुरुआत में शहडोल नाम तय हुआ था लेकिन अब सीधी कर दिया जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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