भविष्य बताने वाले स्वयं नहीं जानते अपना भविष्य
राष्ट्र चंडिका (अखिलेश दुबे)। धर्म और राजनीति का गठजोड़ तो आज से नहीं बल्कि सदियों से होता रहा है लेकिन राजनीति को धर्म से जोडऩा प्रचलन में आ गया है और धर्म के नाम पर प्रदेश और देश में बाबा बुझाओ की भीड़ लगी है बाबाओं का अस्तित्व मंदिर मजारों तक सीमित था लेकिन अब राजनीतिक के आकाओं ने भी अपने-अपने गुरु बना लिए हैं चुनाव आते ही बड़े-बड़े पंडाल बड़ी-बड़ी भागवत बड़ी-बड़ी प्राण प्रतिष्ठा, बड़ी-बड़ी कथाएं का क्रम जारी हो जाता है और आशीर्वाद लेने वाले नेता भी कतार लगाकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
इन बाबाओं के आशीर्वाद में पद प्रतिष्ठा और चुनाव का टिकट से लेकर मंत्री पद तक के सारे ग्रह नक्षत्र इनके मैजिक बॉक्स में रहते हैं इन बाबाओं को देखकर लगता है कि यह बाबा ना होकर साक्षात भगवान के अवतार हो जरा सा चमत्कार दिखाया या टीवी में प्रवचन की धारा का प्रभाव यह होता है कि बाबा गांव से महानगर वासी हो जाते हैं और जो बाबा अपना भविष्य नहीं जानते वे दूसरों का भविष्य बता कर माला मोती से लेकर ताबीज देकर अपनी दुकानदारी चलाते हैं
यह सब बात हम इसीलिए लिख रहे हैं कि ताबीज मोती माला से दूसरों के ग्रह दोष दूर करने वाले अपने शनि राहु दूर क्यों नहीं करते आज समोसे वाले बाबा से लेकर रसिक बाबाओं का सत्संग तो लगा रहता है लेकिन चुनाव के बाद इन बाबाओं का ग्राफ निरंतर घटने की आशंका बनी हुई है क्योंकि राजनेता अपने स्वार्थ के लिए अपना गुरु बना लेते हैं बाद में इनसे दूरी इसलिए बना लेते हैं क्योंकि स्वभाव के अनुकूल बाबा इन नेताओं से दान दक्षिणा की आशा करने लगते हैं.
प्रदेश में कोई भी पार्टी सभी अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इन बाबाओं की शरण में चक्कर लगा रहे हैं और यहां तक की अपने लिए पार्टी टिकट और विजयश्री के लिए अनुष्ठान तक कराने के फिराक में है लेकिन इन बाबाओं को भी समझ लेना चाहिए कि चुनाव के बाद उनका भविष्य क्या होगा।