बिलासपुर। आपके आसपास का वातावरण कैसा है। वहां की गतिविधियां कैसी है और उसे किस अंदाज में ले रहे हैं। सहज महसूस कर रहे हैं या फिर असहजता के बीच रहने समझाैता कर रहे हैं। इस तरह की घटनाएं और वातावरण भी साहित्य के नव सृजन के लिए प्रेरित करती हैं। प्रेरणा कहीं से भी और किसी भी परिस्थिति में मिल सकती है। अगर आपको साहित्य के नव सृजन की प्रेरणा मिल रही है तो आप उसे सहजता के साथ स्वीकार करिए और सृजन की दिशा में कलम उठाकर आगे बढ़ते जाइए।आजकल कलम कम ओर लैपटाप या फिर कंप्यूरट के जरिए की बोर्ड पर उंगलियां दौड़ाते जाइए।
जितनी रफ्तार से आपकी उंगलियां की बोर्ड पर दौड़ेंगी उसी अनुरुप आपकी साहित्यिक यात्रा आगे बढ़ती जाएगी। यह कहना है कवि और उपन्यासकार अशरफी लाल सोनी का। अखबार की दुनिया के इस कलमकार ने अपने पेशे बदल दिए पर साहित्य सृजन औ कविता लिखना नहीं छोड़े। बीते 28 वर्षों से साहित्यिक यात्रा और साधना अनवरत जारी है। नाम के अनुरुप इनकी कविताओं में आधुनिकता का पुट और उपन्यास में आसपास की घटनाओं का जिक्र मिलता है। उपन्यासकार अशरफी बताते हैं कि उनके उपन्यास का सृजन ही उनकी नजरों के सामने घटित घटना पर आधारित है। या यूं कहें कि उपन्यास में आपबीती ज्यादा है। कलयुगी कंश मामा। उपन्यास के नाम से ही साफ हो रहा है कि उनके जीवन में भी किसी ने ऐसी कटुता भरी कि उनके अनुभव
और मन के भीतर चल रहे उहापोह उपन्यास के रूप में सामने आ गया। या यूं कहें कि मन की भावनाओं को उपन्यास के जरिए लोगों के बीच लाने का साहस भी कर दिखाया।
तब खुशियों का दौर चलता था
उपन्यासकार अशरफी लाल सोनी बताते हैं कि 1995 का वह दौर आज भी भुलाए नहीं भुलता। इसी समय से कविता लिखने की शुरुआत हुई। कविताओं का सृजन प्रारंभ हुआ तो दायरा भी बढ़ता गया। उस दौर में अखबारों में कविताओं को प्रकाशन हो जाता था तो उसे अच्छा माना जाता था। समाज के बीच में प्रतिष्ठा बढ़ती थी और मंच भी मिलता था। तब मेरी कविताओं को अखबार में स्थान मिलना प्रारंभ हो गया था। जैसे-जैसे कविताओं का प्रकाशन होता गया जान पहचान के साथ ही मान सम्मान भी मिलने लगा। साहित्य सृजन का ऐसा सुफल मिलेगा यह तो सोचा ही नहीं था। वे बताते हैं कि शुरुआती दौर से लेकर आजतलक सामाजिक जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव भी देखे। परिस्थितियां कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल भी होती रहीं।समय के साथ कुछ बदलाव भी आते रहे। सब बदला पर एक ही बात नहीं बदल पाई। कविता और साहित्य का सृजन अनवरत जारी है। एक अनकही कहानी और अनवरत यात्रा की तरह।
साहित्य सृजन से मिलता है आत्मिक बल
अशरफी लाल बताते हैं कि समय के साथ बहुत कुछ बदलाव आया,पर मेरी साहित्यिक यात्रा आज भी जारी है। इससे मुझे आत्मिक बल और शांति मिलती है। कविताओं और उपन्यास के जरिए युवा पीढ़ी को कुछ दे सकूं तो यह मेरी लिए एक बड़ी बात होगी। पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ ही व्यवसाय में व्यस्तता के बाद भी कविता और साहित्य सृजन के लिए समय निकाल ही लेते हैं।
छंद शाला के जरिए युवाओं का बढ़ा रहे मनोबल
कोरोना संक्रमणकाल के दौर में शहर के नामचीन कवियों,साहित्य और कहानीकारों ने मिलकर छंद शाला का गठन किया है। इसमें युवा से लेकर वरिष्ठ कवियों और साहित्यकारों की टीम है। संक्रमण के दौरान युवाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए कविताओं का सृजन करना और उसे इंटरनेट मीडिया के माध्यम से सभी प्लेटफार्म में प्रसारित कर युवाओं का मनोबल बढ़ाने का काम हम सबने मिलकर किया है। हम सबका यह प्रयास काफी प्रभावी रहा है।
कविता और उपन्यास का हुआ प्रकाशन
अशरफी लाल सोनी की दो किताबें प्रकाशित हो चुकी है। सोनी की अशरफियां जिसका संपादन महेश परिमल ने किया है। कलयुगी कंश मामा उपन्यास का संपादन प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार केशव शुक्ला ने किया है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों के अलावा प्रतापगढ़ सहित अन्य शहरों में राष्ट्रीय कवियों के साथ मंच साझा करने का अवसर भी अशरफी को प्राप्त हुआ है।
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