हिंदू धर्म में आषाढ़ माह का खास महत्व रहता है। शास्त्रों के मुताबिक इस महीने की शुरुआत होते ही देव गहन निद्रा में सो जाते हैं और वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवउठनी एकादशी) पर 4 महीने बाद ही उठते हैं। आने वाले चार मास तक सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं, क्योंकि आषाढ़ से कार्तिक मास तक के ये चार मास केवल पूजा के लिए होते हैं। यह महीना भगवान विष्णु और शिव की पूजा के लिए खास होता है। भगवान शिव और हरि की पूजा पूजा करने से कई कष्ट दूर हो जाते हैं। जीवन में खूब सुख-समृद्धि आती है। इस माह कई मुख्य त्योहार भी होते हैं, जैसे देवशयनी एकादशी, जगन्नाथ रथ यात्रा और गुप्त नवरात्रि है। आषाढ़ मास तीर्थ यात्रा के लिए सबसे शुभ होता है। हिंदी पंचांग के अनुसार पांच जून से आषाढ़ माह की शुरुआत हो गई है।
योगिनी एकादशी का व्रत
आषाढ़ महीने में भगवान शिव और श्रीहरि की पूजा करना शुभ माना जाता है। भगवान शिव और श्रीहरि की पूजा करने से कष्ट दूर होते हैं। आषाढ़ माह में योगिनी एकादशी का व्रत रखना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि व्रत रखने वाले को 88 हजार ब्राह्मणों को खाना खिलाने और गाय को खाना खिलाने के बराबर पुण्य मिलता है। आषाढ़ माह में गुरु की पूजा और सेवा करनी चाहिए।
पूजा के यह हैं नियम
– आषाढ़ मास में सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए और सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए इससे शारीरिक कष्ट दूर होते हैं।
– इस माह श्रीहरि और भगवान शिव, हनुमान जी, सूर्यदेव और मंगल की पूजा करें। इसका शुभ फल प्राप्त होता है।
– आषाढ़ में भगवान शिव, श्रीहरि के साथ मां दुर्गा और हनुमान की पूजा करने से कुंडली में मंगल और सूर्य की स्थिति मजबूत होती है।
– सूर्यदेव की पूजा करते समय गायत्री मंत्र का जाप 10 बार करना चाहिए।
इन कामों से बचें
– आषाढ़ माह में देव सो जाते हैं। ऐसे शादी-विवाह, मुंडन जैसे शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
– आषाढ़ महीने में वर्षा ऋतु का आगमन होता है। इसलिए पानी का अपमान नहीं करना चाहिए। वहीं पानी की बर्बादी भी नहीं करनी चाहिए।
– आषाढ़ माह में बासी भोजन करने से बचना चाहिए। रखा हुआ भोजन करना अशुभ माना जाता है।
– इस समय में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
डिसक्लेमर
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