बिलासपुर। 1957 की वह घटना आजतलक भुलाए नहीं भूल पाता हूं। 71 वर्ष का हो गया हूं पर अपनी मां के लिए आज भी मैं पांच वर्ष का ही बालक हूं। मैं पांच वर्ष का था जब हैजा फैला हुआ था। मेरी मां हैजा का शिकार हो गई और हमेशा-हमेशा के लिए हम सबको छोड़कर चली गई। मेरी एक महीने की नन्ही बहन भी थी। मां के जाने के कुछ ही दिनों बाद वह भी चल बसी। मुझ जैसा अभागा इस दुनिया में शायद ही कोई हाेगा। मेरी मां की तस्वीर भी मेरे पास नहीं है और ना ही उनका चेहरा ही याद है। बस मन में उनकी स्वच्छ और उजली तस्वीर बसाए उनको दिनरात याद करते रहता हूं। मेरे अंतस चेतना में मेरी मां इस कदर रची बसी है कि साहित्य सृजन की प्रेरणा भी उनसे ही मिली है। मेरी अंतस चेतना में बैठकर साहित्य रचना को गंगा के समान अविरल बहने प्रेरित करती रहती है। यह कहना है कवि साहित्यकार व पूर्व डिप्टी कमिश्नर अमृत लाल पाठक का।
साहित्यकार व कवि पाठक की पूरी दुनिया मां की यादों के इर्द-गिर्द बसी हुई है। राज्य प्रशासनिक सेवा के पूर्व अफसर पाठक बताते हैं कि बचपन में मां के विछोह का दुख जीवनभर उसे सालता ही रहेगा। वे आज भी मांग की यादों को संजाेये साहित्य सृजन कर रहे हैं। मां के विछोह ने उसे कर्मवान तो बनाया ही साथ ही अपने कार्य के प्रति कर्त्तव्यनिष्ठ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हायर सेकेंडरी की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास करने के बाद सीएमडी महाविद्यालय में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया। यही वह दौर था जब मेरी साहित्यिक रचना को बल मिला। प्रोत्साहन ऐसा कि साहित्य सृजन का वह दौर आज भी मुझे अच्छे से याद है। उस दौर में डा विनय पाठक से मेरी मुलाकात हुई। सीएमडी महाविद्यालय में वे एमए अंतिम वर्ष के छात्र थे। सीएमडी महाविद्यालय में हिंदी साहित्य परिषद का संचालन भी किया जा रहा था। प्रथम वर्ष में ही परिषद के सदस्य के रूप में मेरा चयन हो गया। उस दौर में परिषद में चयन होना ही गर्व और गौरव की बात थी। डा पाठक ने मेरी मुलाकात द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र जी व पालेश्वर शर्मा जी से कराई। साहित्य सृजन के प्रति मेरी ललक और झुकाव को देखते हुए विप्रजी ने मुझे भारतेंदु साहित्य से जोड़ा। वर्ष 1972 में दूरसंचार विभाग में मेरी नौकरी लग गई। ट्रेनिंग के लिए भोपाल जाना पड़ा। तब मेरी पढ़ाई भी चल रही थी। एक साल की ट्रेनिंग के बाद तोरवा नाका स्थित कार्यालय में मेरी पदस्थापना हो गई। सुबह साढ़े छह से 10 बजे तक पढ़ाई करने कालेज जाता था और उसके बाद नौकरी करने के लिए कार्यालय।
पहले ही प्रयास में पीएससी किया पास
साहित्यकार व कवि पाठक का अकादमिक रिकार्ड भी बेहतर रहा है। यही कारण है कि पहले ही प्रयास में उन्होंने राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर ली और कनिष्ठ सेवा में आ गए। उनकी पहली पोस्टिंग रायगढ़ जिला मुख्यालय में हुई। प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी साहित्यिक यात्रा निरंतर जारी रही। कवि पाठक बताते हैं कि वर्ष 1982 में जब विप्र जी का निधन हो गया उसके बाद भारतेंदु साहित्य समिति से प्रत्यक्ष योगदान कम हो गया था।
राजस्व मंडल में महत्वपर्ण जिम्मेदारी निभाई
अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान पाठक छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों में महत्वपूर्ण पदों पर काबिज रहे। राजस्व मंडल में प्रभारी सचिव के पद पर भी काम किया। डिप्टी कमिश्नर के पद से वे सेवानिवृत हुए। सेवानिवृत के पहले और आजतलक साहित्य स़ृजन का दौर जारी है।
प्रमुख साहित्यिक रचना
मेरी दुनिया कवि व साहित्यकार पाठक की पहली किताब है। इसके बाद काव्य लोक,भटके हुए राही की तरह
रामफल जैसे साहित्यिक रचना की। वे बताते हैं कि रामफल यह एक पात्र है जिसके माध्यम से समाज,राजनीति व प्रशासन पर व्यंग रचना की है।
दोहा गीत का प्रकाशन हाल ही में हुआ है। छंद शाला के सौजन्य से इसका सृजन हुआ है।
इनसे बना हुआ है जुड़ाव
हिन्दी साहित्य भारती जिला इकाई का अध्यक्ष,छंदशाला,विप्र स्मृति साहित्य संगम विप्र समन्वय साहित्य परिषद से जुड़ाव बना हुआ है।
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