ग्वालियर। हमारे वेद पुराणों में वृक्षों की महिमा बताई गई है। कई वृक्ष व पेड़ न केवल पूज्यनीय बताए गए हैं, बल्कि ये कई बीमारियाें को भी ठीक करते हैं। इनमें बिल्व यानि बेल व आंवले के पेड़ शामिल हैं। स्कंद पुरणा के मुताबिक रविवार व द्वादशी के दिन बिल्व वृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्म हत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसी तरह आंवला खाने से आयु बढ़ती है । इसका रस पीने से धर्म का संचय होता है और रस को शरीर पर लगाकर स्नान करने से दरिद्रता दूर होकर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।
बेल यानि विल्व वृक्ष का महत्व
– स्कंद पुराण के अनुसार रविवार और द्वादशी के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए । इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं ।
– जिस स्थान में बिल्ववृक्षों का घना वन है, वह स्थान काशी के समान पवित्र है ।
– बिल्वपत्र छः मास तक बासी नहीं माना जाता ।
– चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार को तथा दोपहर के बाद बिल्वपत्र न तोड़ें ।
– 40 दिन तक बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है ।
– घर के आँगन में बिल्ववृक्ष लगाने से घर पापनाशक और यशस्वी होता है । बेल का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर-दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है और बीच में हो तो मधुर जीवन बनता है ।
आंवले के वृक्ष का महत्व
– आंवला खाने से आयु बढ़ती है । इसका रस पीने से धर्म का संचय होता है और रस को शरीर पर लगाकर स्नान करने से दरिद्रता दूर होकर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।
– जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं ।
– मृत व्यक्ति की हड्डियां आंवले के रस से धोकर किसी भी नदी में प्रवाहित करने से उसकी सदगति होती है ।
– प्रत्येक रविवार, विशेषतः सप्तमी को आँवले का फल त्याग देना चाहिए । शुक्रवार, प्रतिपदा, षष्ठी, नवमी, अमावस्या और सक्रान्ति को आँवले का सेवन नहीं करना चाहिए ।
– आंवला-सेवन के बाद 2 घंटे तक दूध नहीं पीना चाहिए ।
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