जोन-1 के डीसीपी अभिषेक आनंद की सख्ती धीरे-धीरे दिखने लगी है। कम बोलने वाले डीसीपी ने क्षेत्र में पकड़ बना ली है। 2018 बैच के आनंद की पहली पोस्टिंग है। आते ही देख लिया कि किस थाना क्षेत्र में क्या गड़बड़ी हो रही है। पब-होटल और बार वालों की मनमानी की जानकारी मिली तो पूरा अमला सड़क पर उतार दिया। वीकएंड पर तो डीसीपी स्वयं भी चौराहों पर खड़े रहने लगे। पहला अवसर है जब किसी इलाके में 200 से ज्यादा लक्जरी कारों पर कार्रवाई करवाई। डीसीपी की सख्ती का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि फोन करने वालों से मातहत कोने में जाकर माफी मांगते हैं। यह कहते हुए भी देखा जाने लगा कि उनके बस में होता तो गाड़ी ही नहीं रोकता। लेकिन नए आइपीएस के सामने उनकी नहीं चल पा रही है।
निरीक्षकों के सामने बैकफुट पर एडीसीपी
पहला अवसर है जब निरीक्षकों के आगे एडीसीपी स्तर के अधिकारी को बैकफुट पर आना पड़ रहा है। नगरीय सीमा में पदस्थ एडीसीपी थाना प्रभारियों (निरीक्षकों) से पंगा लेने से बच रहे हैं। लंबे समय से पदस्थ होने के कारण एडीसीपी के जाने का समय आ गया है। शहर के ज्यादातर थाना प्रभारी मनमानी करते हैं। सीपी और डीसीपी उनके विरुद्ध पत्राचार करते हैं लेकिन एडीसीपी न कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा पाते हैं न उनके विरूद्ध रिपोर्ट बनाते हैं। यही वजह है कि ज्यादातर एसीपी और थाना प्रभारियों में अबोला हो गया है। एसीपी थानों की छोटी-छोटी बातों पर नजर रखते हैं। थाना प्रभारियों को यह बात गवारा नहीं है। एसीपी उनके विरूद्ध लिखापढ़ी भी कर देते हैं लेकिन एडीसीपी उनकी भी रिपोर्ट दबा जाते हैं। उनका मानना है कि थाना प्रभारी किसी न किसी की सिफारिश से पदस्थ हैं और उनके तबादले का वक्त आ गया है।
सेंट्रल जेल के हालातों से खुश नहीं मुख्यालय
नए अफसरों की पदस्थापना के बाद से सेंट्रल जेल के हालात बिगड़ रहे हैं। मुख्यालय में बैठे अफसर भी उनकी रिपोर्ट बना चुके हैं। यह अलग बात है कि गुटबाजी के कारण टस से मस नहीं कर पा रहे हैं। करोड़ों के गबन में इंदौर आई जेल अधीक्षक(निलंबित) उषा तो फोन और नकदी तक ले आई थी। नकदी तो कोर्ट को दे दी लेकिन फोन जिला जेल तक जा पहुंचा। ताजा मामला कैदियों से वसूली का है। चर्चा है कि ठेके पर जेल चला रहे जेलर स्तर के अधिकारियों ने बंदी न देने वाले बंदियों की पहले पिटाई की बाद में सेल में बंद करवा दिया। मुख्यालय पहुंची खबर में तो यह भी बताया कि जेल में बैरक बांटने से लेकर अस्पताल में भर्ती करने के लिए भी शुभ लाभ करना पड़ता है। रिपोर्ट डीआइजी स्तर के एक अधिकारी ने बनाई है जो पूर्व में पदस्थ रह चुके हैं।
चर्चा में बंगले और लक्जरी फार्म हाउस
पुलिस महकमे में आजकल बंगले और लक्जरी फार्म हाउस की चर्चा है। गोपनीय विभाग के पूर्व अधिकारी को बकायदा कुंडली बनाकर ले गए हैं। बताते हैं लंबे समय से पदस्थ पुलिस अफसरों ने बायपास क्षेत्र में बड़े-बड़े फार्म हाउस बनाए हैं। जिन अफसरों की मेहरबानी से फार्म हाउस बने उन्हें बंगले बनवाए गए हैं। ऐसा कम ही होता है जब इंदौर में पदस्थ रहने वाला अफसर फ्लैट-बंगला न खरीदे। बल्कि बाहर पदस्थ अफसर भी इंदौर में बसने की चाहत रखते हैं। इस बार चर्चा इसलिए हुई कि फार्म हाउस बनाने वालों ने उन अफसरों को पछाड़ दिया जो बंगले बना कर रह रहे थे। रिपोर्ट बनाने वाले अफसर का दावा है कि कुछेक ने तो शहर के बाहरी क्षेत्र में बन रही कालोनियों में भी पार्टनरशिप कर ली है। हालांकि मुख्यालय पहुंचने के बाद भी इस रिपोर्ट पर किसी ने ध्यान नहीं दिया है।
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