मुखौटा के जरिए संस्कृतियां अपनी पहचान स्थापित करती हैं

भाेपाल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में संग्रहालय शैक्षणिक कार्यक्रम करो और सीखो के तहत आयोजित मुखौटा निर्माण की कार्यशाला में पंजीकृत प्रतिभागी ने मिट्टी से अपने मनपसंद मुखौटे बना रहे हैं। संजय सप्रे के मार्गदर्शन में यह गतिविधि चल रही है। सप्रे ने रविवार को प्रतिभागियों को बताया कि मुखौटे का मतलब एक ऐसा आवरण है, जिसे धारण करने से रूप बदल जाता है, व्यक्ति किसी और का प्रतिरूप बन जाता है,मुखौटे और उनके बहुत से रूप सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का अहम माध्यम हैं, जिसके जरिए संस्कृतियां अपनी पहचान स्थापित करती हैं, संवेदनाएं प्रकट करती हैं, अपनी आंतरिक और बाहरी यथार्थ की अभिव्यक्ति करती हैं। मुखौटा व्यक्ति के किसी एक पहलू के बजाए संपूर्ण व्यक्तित्व को प्रकट करता है। उन्होंने मिट्टी से मुखौटे बनाने के बाद प्लास्टर आफ पेरिस में मोल्ड बनाना भी सिखाया।

बताई बनाने की विधि

सप्रे ने बताया कि कुंए या तालाब के किनारे से मिट्टी का संग्रहण करके उसे सुखाकर कंकड़ पत्थर अलग कर लेते हैं, उसके बाद मिट्टी को एक बर्तन में रखकर पानी डालकर दो-तीन दिन तक गलाते हैं। मिट्टी को गुथकर मिट्टी तैयार कर लेते हैं। तत्पश्चात किसी भी प्रकार की आकृति बनाने के लिए मिट्टी का एक गोल टुकड़ा लेकर उसे हथेली में रखकर गोलाकार आकृति बनाकर उसमें हाथ की अंगुलियों से नाक, कान, आंख उभार कर मुखौटा की आकृति बनाते हैं, साथ ही अगर कोई दूसरा मिट्टी का खिलौना बनाना है तो उसे भी हाथ के सहारे आकार देते हैं। आकृति बनाने के बाद उसे लकड़ी या पत्थर के समतल जगह पर रख कर सुखाते हैं। हल्का सूखने के बाद बांस की पतली पट्टी से खुरच कर मुखौटों के ऊपरी भाग को चिकना करते हैं और वापस सुखाते हैं। सीधे धूप में रखने पर मिट्टी की आकृति में दरार पड़ने की संभावना रहती है। आकृति के पूरी तरह सूखने के बाद पुनः पतले पेपर से चिकना करते हैं उसके बाद मन पसंद रंगों से सजाया जाता है।

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