भोपाल। माध्यमिक शिक्षा मंडल के हाल ही में आए 10वीं व 12वीं के परीक्षा परिणाम में इस बार भी प्रदेश के निजी स्कूल सरकारी स्कूलों से आगे निकल गए। ऐसा लगातार दूसरी साल हो रहा है। इस बार सरकारी स्कूलों का 10वीं में परिणाम 61.77 प्रतिशत तो निजी का 66.06 प्रतिशत रहा, यानी 4.29 प्रतिशत कम रहा। पिछले साल सरकारी स्कूलों का 55.4 प्रतिशत तो निजी का 69.48 प्रतिशत रहा था।
इस साल 12वीं में सरकारी स्कूलों का परिणाम 54.52 प्रतिशत तो निजी का 56.66 प्रतिशत रहा, यानी 2.14 प्रतिशत पिछड़ गए। पिछले साल सरकारी स्कूलों का परिणाम 70.92 प्रतिशत तो निजी का 76.30 प्रतिशत रहा। प्राचार्यों व शिक्षाविदों का मानना है कि स्कूलों में गतिविधियां अधिक कराई जाती हैं, इनमें विद्यार्थियों का भी सहयोग लिया जाता है। कुछ कार्यक्रम तो बिना बच्चों के सफल ही नहीं होते।
कई शिक्षकों को भी गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है। इससे वे पढ़ाने के लिए समय नहीं निकाल पाते। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था प्रभावित होती है। यही नहीं, सरकारी स्कूलों में ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे आते हैं, इनमें से कुछ के अभिभावक काम के चलते बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं।
12वीं में दोनों का प्रतिशत कम रहा
इस साल सरकारी व निजी दोनों स्कूल पिछले साल के मुकाबले पिछड़े हैं। सरकारी स्कूलों का परिणाम इस साल 54.52 प्रतिशत तो पिछले साल 70.92 प्रतिशत रहा था। यानी इस बार 16.40 प्रतिशत की गिरावट आई है। निजी स्कूलों का इस साल का परिणाम 56.66 प्रतिशत और पिछले साल का 76.30 प्रतिशत है। इस बार 19.64 प्रतिशत की कमी आई है।
12वीं का प्रतिशत 2022 2023 तुलना
सरकारी स्कूलों का परिणाम- 70.92 % -54.52%
16.40 निजी स्कूलों का परिणाम
76.30 % -56.66% –19.64
10वीं का परिणाम- 2022 2023 तुलना
सरकारी स्कूलों का परिणाम
55.40 -61.77 6.37
निजी स्कूलों का परिणाम
69.48 -66.06 -3.42
इस कारण पिछड़े सरकारी स्कूल
-आर्थिक रूप से कमजोर घर के बच्चे आते हैं, अभिभावक भी ध्यान नहीं देते हैं।
-सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है।
– सरकार स्कूलों में गतिविधियां अधिक कराई जाती है। -विद्यार्थियों को बड़े-बड़े सरकारी कार्यक्रमों में भेजा जाता है।
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-सरकारी स्कूलों में ऐसे बच्चे प्रवेश लेते हैं, जिनका कहीं भी प्रवेश नहीं होता है। साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर घरों के बच्चे होते हैं, जिनके लिए पास होना बस जरूरी है और अभिभावक भी उनके ऊपर ध्यान नहीं देते हैं। यही नहीं बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करते रहते हैं।
डा. वंदना मिश्र, सेवानिवृत प्राचार्य
सभी सरकारी स्कूलों के परिणामों की समीक्षा कर प्राचार्यों को जिम्मेदारी दी जाएगी, ताकि अगले साल परिणाम बेहतर हो सके।
अंजनी कुमार त्रिपाठी, जिला शिक्षा अधिकारी
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