भोपाल। चार बेटियों के बाद बेटा सौरभ पैदा हुआ। वह बचपन से मेधावी था। मैंने उसे अच्छे संस्कार दिए, लेकिन रुकिए, अब मैं यह कैसे कह सकता हूं? दीपक तले अंधेरा जैसा मेरा हाल हुआ। मैंने जीवन के सात दशक धर्म का मर्म समझने में बिता दिए।
यही समझा कि सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है। 2004 में अयोध्या की माता काशी बाई से दीक्षा ली, नाम मिला साधु सत्यप्रज्ञ। भगवा जो पहने हुआ हूं, त्याग का प्रतीक है। लेकिन, अब इन सबसे क्या? बेटा आंखों के सामने धर्म के विराट समुद्र को छोड़कर अंधेरे कुएं में कूद गया और मैं कुछ नहीं कर सका। इतना कहते-कहते 75 वर्षीय अशोक राजवैद्य का गला रुंध जाता है। आंखों से आंसू बहने लगते हैं।
अशोक के बेटे सौरभ राजवैद्य उर्फ सलीम को मध्य प्रदेश आतंकवाद निरोधक दस्ता (एमपी एटीएस) ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन हिज्ब-उत-तहरीर के सदस्य होने और देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार किया है।
बैरसिया की माता हरसिद्धि कालोनी में अशोक राजवैद्य रहते हैं। मध्यमवर्गीय परिवार का करीने से सजा ड्राइंगरूम। कमरे में परिवार की उपलब्धियों की तस्वीरों के साथ महावीर, बुद्ध और कार्ल मार्क्स की प्रतिमाएं एवं सेल्फ व टेबल पर रखीं कई किताबें।
सेवानिवृत आयुर्वेदिक चिकित्सक अशोक राजवैद्य ने हिचकिचाहट के साथ बात शुरू की, कुछ देर में खुले और सौरभ के धार्मिक झुकाव, मतांतरण और एक दशक में उसके मोहभंग की कहानी सिलसिलेवार बताई।
उन्होंने कहा कि सौरभ ही नहीं, उसकी पत्नी मानसी सहित पांच दोस्तों का मतांतरण हुआ। उन्होंने पुलिस अधिकारियों को शिकायत तक की, लेकिन तब प्रदेश में मतांतरण कानून नहीं होने से पुलिस ने उनके वयस्क होने की बात कहकर हाथ खड़े कर दिए
सौरभ के मतांतरण की कहानी पिता कुछ यूं सुनाते हैं…
उसने अपने इस्लाम अपनाने की बात हमसे छुपाई। वह 2010 में ही मुस्लिम बन गया था। मुझे 2012 में पता चला। मैंने कई बार पूछा कि सनातन धर्म में तुमको क्या समस्या है? तर्क पर वो टिक नहीं पाता था। उस पर तो बस जुनून सवार था। वह मुझे भी इस्लाम धर्म अपनाने की जिद करता। बहू भी कहती पिताजी वहां बहुत प्रेम है। फिर वह कहने लगा, मैं जन्नत में रहूंगा, आप दोजख में रहोगे, यह देख नहीं सकूंगा। यह तर्क वह स्पष्ट नहीं कर पाया।
पहले विवाद, फिर बढ़ी प्रो. कमाल व मानसी से दोस्ती
भोपाल के निजी कालेज से बीफार्मा, हुबली कर्नाटक से एमफार्मा और पीएचडी करने के बाद सौरभ को निजी कालेज में नौकरी मिल गई थी। वहां मानसी अग्रवाल रजिस्ट्रार थी। किसी बात पर उसकी मानसी से बहस हई तो वहीं के प्रोफेसर कमाल अहमद और उसके साथी सौरभ से लड़ने के लिए खड़े हो गए। उसने नौकरी छोड़ी और आनंद नगर में दूसरा कालेज ज्वाइन कर लिया। यह संयोग था, मुझे नहीं पता, लेकिन कुछ समय बाद प्रोफेसर कमाल ने और फिर मानसी ने भी वहीं ज्वाइन किया और इस बार उसे मीठी-मीठी बातों में उलझाना शुरू कर दिया।
चांसलर बनाने का लालच दिया
सौरभ की जिद पर हमने मानसी से विवाह करा दिया, जिसमें कमाल और उसका पूरा गैंग शामिल हुआ था। सौरभ की संप्रेषण कला अच्छी थी। इन लोगों ने उसकी मुलाकात मुंबई में जाकिर नाइक से कराई। उससे कहा गया कि तुम्हें प्रिंसिपल क्या, चांसलर बनवाएंगे। वह उनके चंगुल में फंसता चला गया। इसके बाद सौरभ और मानसी दोनों का मतांतरण कराया गया।
हो गया था मोहभंग
सौरभ ने एक साल पहले मुझसे फोन पर कहा कि धर्म बदलने तक कई लालच दिए जाते हैं, लेकिन बाद में हमेशा खुद को पक्का मुसलमान साबित करने को कहा जाता है। वे बाहर से आने वालों पर भरोसा नहीं करते। फिर, उसने मतांतरित लोगों का संगठन बनाया, शायद यहीं से उन्होंने उसे किनारे लगाने का मन बना लिया। मेरी युवाओं के लिए यह सलाह है किसी के बहकावे में नहीं आएं, वे आपको फुसलाते हैं, फिर धर्म बदलाव कर अपनों के खिलाफ ही इस्तेमाल करते हैं।
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