एक पवित्र नाम पर अवैध का बदनुमा दाग

इस शहर में एक कालोनी है तुलसी नगर। तुलसी नाम से ही पवित्रता का आभास होता है, लेकिन कालोनी का निर्माण करने वाले ने इसे इतना अपवित्र कर रखा है कि यह वर्षों से अवैध होने का दंश झेल रही है। इस अभिशाप को यहां के रहवासी भी भोग रहे हैं। नगर निगम की सूची में यह अवैध कालोनी होने से यह प्रशासन के लिए भी सौतेली है। वोट के लिए पांच साल से जनप्रतिनिधि भी इस कालोनी को वैध करने का केवल आश्वासन ही दे रहे हैं। सरकारी तौर पर प्रक्रिया भी चल रही है लेकिन हो कुछ नहीं रहा है। दरअसल कालोनाइजर शिवनारायण अग्रवाल ने यहां नियमों की धज्जियां उड़ाकर शासकीय जमीन पर भी प्लाट काटे हैं। यह ऐसा गहरा दाग है कि नियमों के साबुन से भी नहीं मिट रहा है। जिम्मेदार अधिकारियों को भी डर है कि इस अवैध को वे वैध कर तो देंगे लेकिन यह दाग हमेशा के लिए चस्पा हो जाएगा। रहवासी संघ द्वारा एक बार फिर मोर्चा खोलने और महापौर पुष्यमित्र भार्गव के आश्वासन से उम्मीद जगी है कि तुलसी नगर से अवैध का दाग मिटेगा।

भाजपा में बदलाव का दौर शुरू, संघ की निगरानी बढ़ी

भाजपा में कुछ वरिष्ठ नेताओं के असंतोष के बाद पार्टी संगठन में बदलाव का दौर भी शुरू हो गया है। फिलहाल पार्टी के जिला प्रभारी रघुनाथ सिंह भाटी को हटाकर रायसिंह सैंधव को प्रभारी बनाया गया है। भाटी वर्तमान जिला कार्यसमिति के गठन के पहले से ही जिले के प्रभारी थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नजदीकी होने से अब उनको बुधनी विधानसभा क्षेत्र का संयोजक बनाया गया है। उनकी जगह प्रभारी बनाए गए सैंधव पाठ्यपुस्तक निगम के अध्यक्ष रहे हैं। संघ से जुड़े सैंधव को जिले का प्रभारी बनाने से एक संदेश तो स्पष्ट है कि आने वाले चुनाव में वरिष्ठों के असंतोष को दूर करने की कमान संघ या संघ से जुड़े पदाधिकारी ही संभालेंगे। इससे पहले भगवानदास सबनानी को बदलकर संघ से जुड़े राघवेंद्र गौतम को संभागीय प्रभारी बनाया गया था। यानी पार्टी और सत्ता से जुड़े नेताओं द्वारा बिगाड़े गए माहौल को सुधारने का काम अब संघ को ही करना पड़ेगा। माना जा रहा है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले संगठन में कुछ और बदलाव भी देखने को मिल सकते हैं।

बिना वेतन का कर्मचारी और काम से अधिकारी

सुनने में अजीब लग रहा होगा लेकिन इंदौर जनपद पंचायत में ऐसा ही है। यहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी गोपाल शरण प्रजापति की ओर से एक ऐसे व्यक्ति को काम पर रखा गया है जो बिना वेतन लिए काम कर रहा है। आश्चर्य की बात यह भी है कि उसका कामकाज का तरीका किसी अधिकारी से कम नहीं है। जनाब शासकीय योजनाओं के वे सारे वित्तीय काम भी कर रहे हैं जो सीईओ को करना चाहिए। जैसे सीईओ के डिजिटल सिग्नेचर से ग्राम पंचायतों के खाते में आनलाइन राशि ट्रांसफर करना, जेम पोर्टल पर पंचायतों में कचरा गाड़ियां खरीदने की बिड जारी करना और इसी तरह के तमाम कार्य। यह सब लाखन राठौड़ नाम के व्यक्ति द्वारा जनपद पंचायत में बैठकर किया जा रहा है। जनपद सीईओ की मेहरबानी से इस तरह की गैरकानूनी व्यवस्था क्यों बनाई गई है। किसी दिन आर्थिक अनियमितता हुई तो जिम्मेदार कौन होगा? जिला पंचायत सीईओ वंदना शर्मा को भी इसकी शिकायत पहुंची है लेकिन हुआ कुछ नहीं।

अमल के इंतजार में सुस्ता रहा तबादलों का आदेश

शासन के एक आदेश से काम को गति मिलती है तो कोई आदेश ऐसा भी होता है जो सुस्ती भी ले आता है। अब ग्रामीण आजीविका मिशन की ही बात लीजिए। यहां प्रदेश स्तर से कुछ जिलों के जिला परियोजना प्रबंधकों के तबादला आदेश करीब पांच माह पहले हुए थे। किंतु इस पर अमल ही नहीं हो पा रहा है। इस कारण इंदौर सहित अन्य जिलों के जिला परियोजना प्रबंधक असमंजस में हैं। उन्हें लग रहा है कि अब तो उन्हें नए जिले में जाना है। इस कारण वर्तमान जिले में मन लगाकर काम भी नहीं कर पा रहे हैं। इंदौर के जिला परियोजना प्रबंधक आनंद शर्मा का तबादला खंडवा हुआ है जबकि रतलाम से हिमांशु शुक्ला को इंदौर भेजा गया है। इसी तरह बड़वानी से योगेश तिवारी को रतलाम भेजने के आदेश हुए हैं। पर इनमें से कोई भी नई जगह पर नहीं पहुंच पाया है। संबंधित जिला प्रशासन ने इन अधिकारियों को रिलीव ही नहीं किया। असमंजस में कहीं कोई काम नहीं हो रहा है।

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