मध्य प्रदेश की जेलों में बंदियों को एड्स और टीबी का खतरा

 भोपाल । मध्य प्रदेश की जेलों में बंदियों को एड्स और टीबी जैसी गंभीर बीमार का खतरा है। ऐसे में अब प्रदेश भर की जेलों में बंदियों की टीबी और एड्स रोग की जांच की जाएगी।

राज्य के सामाजिक न्याय विभाग एवं जेल विभाग के सहयोग से मध्य प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसायटी एक माह तक सभी जेलों, समाज सुधार गृहों, स्वधारा गृह, वन स्टाप केंद्र, नशा मुक्ति केंद्रों और संप्रेषण गृहों में जांच अभियान चलाएगी।

इस दौरान सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन, एड्स यानी एचआइवी, टीबी और हैपेटाइटिस के प्रति जागरूकता, रोग की जांच और उपचार के लिए 15 जून तक विशेष अभियान चलाया जाएगा। इस इंट्रीग्रेटेड हेल्थ कैंप में एचआइवी संक्रमित व्यक्ति की जानकारी गोपनीय रखी जाएगी।

2020-21 में जांच के बाद 33 प्रतिशत बंदी पाए गए थे पाजिटिव

वर्ष 2020-21 में प्रदेश की जेलों में कोरोना के साथ एड्स का भी खतरा था। 33 प्रतिशत बंदी एचआइवी पाजिटिव पाए गए थे। उस समय उन्हें उपचार सुविधा भी नहीं मिल पाई थी। राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी ने अप्रैल, 2020 से जनवरी, 2021 के दौरान मध्‍य प्रदेश की जेलों में 52,894 बंदियों की एचआइवी स्क्रीनिंग की थी, जिसमें से 142 बंदी एचआइवी चिह्नित किए गए थे। इनमें से 119 बंदियों की एचआइवी पुष्टि के लिए जांच की गई थी और ये सभी एचआइवी पाजिटिव पाए गए थे।

पंजीयन न होने से बंदियों की नहीं हुई देखभाल और न ही मिल सका उपचार

एचआइवी पाजिटिव व्यक्ति का एंटी रिट्रोवायरल थेरेपी केंद्र में पंजीकरण किया जाता है, ताकि उनकी देखभाल और उपचार किया जा सके। लेकिन जेल प्रशासन ने सिर्फ 82 बंदियों का ही पंजीयन कराया था तथा शेष 33 प्रतिशत यानी 37 बंदियों का पंजीयन ही नहीं कराया गया।

ऐसे में इन एचआइवी पाजिटिव बंदियों से अन्य बंदियों के संक्रमित होने का खतरा बना हुआ है। पाजिटिव बंदी के जीवनसाथी एवं अन्य पार्टनर की भी एचआइवी जांच आवश्यक होती है। वर्ष 2020-21 में जबलपुर सेंट्रल जेल में चार, भोपाल सेंट्रल जेल में तीन, रीवा सेंट्रल जेल, शहडोल व सिगरौली जिला जेल में 1-1 पाजिटिव बंदी को एंटी रिट्रोवायरल थेरेपी केंद्र से लिंकेज नहीं दिया गया है।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.