सूतक और पातक काल क्या हैं? जानें इनका ग्रहण और जन्म-मृत्यु से संबंध

सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण से पहले लगने वाले सूतक काल को भारत में बहुत गंभीरता के साथ लिया जाता है. सूतक काल में देवी-देवताओं की पूजा नहीं होती है और कई महत्वपूर्ण कार्य वर्जित हो जाते हैं.

क्या आप जानते हैं कि सूतक की तरह एक पातक परंपरा भी होती है. आइए आज आपको बताते हैं कि आखिर सूतक और पातक क्या हैं और ये कब-कब लागू होते हैं.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहण के अलावा जन्म और मरण के साथ सूतक और पातक का गहरा संबंध होता है. और ये दोनों ही एक इंसान का जीवन काफी हद तक प्रभावित करते हैं.

सूतक क्या है?
सूतक का समय ग्रहण और जन्म के समय हुई अशुद्धियों से है. घर में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसके परिवार पर सूतक लागू हो जाता है. इस दौरान बच्चे के माता-पिता और घर के अन्य सदस्य किसी धार्मिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेते हैं. यहां तक कि छटी के पूजन तक घर की रसोई बच्चे की मां का जाना वर्जित होता है. जबकि सूर्य ग्रहण के सूतक काल में मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं. पूजा-अर्चना वर्जित होती है.

पातक क्या है?
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो वहां पातक लग जाता है. इसमें मृत व्यक्ति के घरवालों को 12 या 13 दिन तक पातक के नियमों का पालन करना पड़ता है. इसमें घर के सदस्यों को रसोई में जाने या कुछ पकाने की मनाही होती है. पातक में पूजा-पाठ और शुभ या मांगलिक कार्य भी नहीं किए जाते हैं.

क्यों लगता है पातक?
किसी व्यक्ति की मृत्यु से फैली अशुद्धि के चलते पातक काल लग जाता है. वैसे तो पातक काल सवा महीने का होता है, लेकिन दाह संस्कार से लेकर 13 दिन इसका सख्ती के साथ पालन करना पड़ता है. अस्थि विसर्जन, पवित्र नदी में स्नान और ब्राह्मण को भोज कराने के बाद ही पातक समाप्त होता है.

कब-कब लगता है पातक?
घर में किसी इंसान की मृत्यु होने के अलावा स्त्री के गर्भपात और पालतू जानवर की मृत्यु होने पर पातक के नियमों का पालन करना चाहिए. पातक के दिन और समय का निर्धारण भी अलग होता है.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.