2014 का कांग्रेस मुक्त भारत अभियान, 9 साल बाद भी कांग्रेस बनी हुई है दमदार

भोपाल। 2014 में जब कांग्रेसनीत यूपीए को हराकर भाजपा सत्ता में आई. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने,तो पार्टी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बुलंद किया। पार्टी का तर्क था कि देश में कांग्रेस को पूरी तरह खत्म कर देंगे। लेकिन 9 साल बाद भी कांग्रेस पूरी दमदारी के साथ खड़ी हुई है, जबकि भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत के लिए जो फॉर्मूला लागू किया है, उससे भाजपा कांग्रेस-युक्त हो गई है। यानी अब भाजपा में कांग्रेस के कई नेता बड़े पदों,जिसमे मंत्री और मुख्यमंत्री बने हुए हैं। दरअसल, भाजपा ने कांग्रेस मुक्त अभियान को सफल बनाने के लिए विपक्षी दल के नेताओं को सीबीआई और ईडी का डर दिखाया, जिसके कारण कांग्रेस सहित दूसरी विपक्षी  पार्टियों के सैकड़ों नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं। इन आयातित नेताओं के कारण मूल भाजपाईयों के सामने अस्तित्व का खतरा मंडराने लगा है। अब भाजपाई अपनी ही पार्टी में बेगाने हो गए हैं। पार्टी की विचारधारा भी बदल गई है. कांग्रेस और अन्य पार्टियों की संस्कृति भी भाजपा में आने लगी है.
चाल, चरित्र और चेहरे वाली भाजपा दक्षिणपंथी विचारधारा की पार्टी है। इस विचारधारा की देश में यही एकमात्र पार्टी है।  सत्ता में आने के बाद से पार्टी ने अपना कुनबा बढ़ाने के लिए दूसरी विचारधारा वाली पार्टियों में जमकर तोडफ़ोड़ की है। 2014 से लेकर अब तक दूसरी पार्टियों के करीब 211 विधायक और सांसद भाजपा में शामिल हो चुके हैं। भारतीय लोकतंत्र में इसके पहले कभी भी इतनी बड़ी संख्या में तोडफ़ोड़ नहीं हुई । इन 9 सालों में बीजेपी ने ना केवल अपने वोट बैंक को बढ़ाया है, बल्कि कांग्रेस समेत कई क्षेत्रिय दलों के नेताओं भाजपा  में शामिल किया है। इस कारण भाजपा का मूल स्वरूप कांग्रेसमय हो गया है।

कांग्रेसी बन गये भाजपा का चेहरा
कभी अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी भाजपा का खांटी चेहरा हुआ करते थे। लेकिन अब इनकी जगह मूल कांग्रेसियों ने ले ली है। दरअसल, कुछ कांग्रेसियों ने सत्ता के लोभ में, तो कुछ ने सरकार के दबाव में भाजपा का दामन थाम लिया है। इनमें प्रमुख हैं असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, जितेन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़, चार दशक से अधिक समय तक कांग्रेस में रहे बीरेंद्र सिंह, हेमवती नंदन बुहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा और बेटी रीता बहुगुणा, कभी राहुल गांधी  की टीम का एक अहम हिस्सा रहे आरपीएन सिंह, यूपी में एक दिन के मुख्यमंत्री रहे जगदंबिका पाल, चौधरी बीरेंद्र सिंह, महाराष्ट्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण राणे, पूर्व विदेश मंत्री रहे एसएम कृष्णा, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी, एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी, हार्दिक पटेल आदि ये बड़े नाम हैं, जो कभी कांग्रेस के हुआ करते थे।

भाजपा में जाते धुल गए इनके दाग
दरअसल, भाजपा ने अपना कुनबा बढ़ाने के लिए दूसरी पार्टियों के नेताओं को भ्रष्टाचार या अन्य मामलों में फंसाना शुरू किया। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस, सपा, बसपा, टीएमसी, एनसीपी, शिवसेना के कई नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन हैरानी की बात यह है, कि जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के दाग लगे. उनके भाजपा में जाते ही सारे दाग धुल गए। इनमें कांग्रेस की तरुण गोगोई सरकार में मंत्री रहे हिमंत बिस्वा शर्मा पर शारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई ने आरोपी बनाया था। ममता सरकार में कद्दावर मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी से सीबीआई ने शारदा घोटाले में पूछताछ शुरू की थी। आसनसोल के कद्दावर नेता जितेंद्र तिवारी पर कोयला चोरी, नारायण राणे पर आदर्श सोसायटी मामले में हेराफेरी का आरोप, 2009 से 2014 तक मनसे के विधायक रहे प्रवीण डारेकर पर 2015 में मुंबई कॉपरेटिव बैंक में 200 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया गया था। वहीं पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल पर भाजपा सरकार के दौरान राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था। महाराष्ट्र के कद्दावर नेता अजित पवार पर 70 हजार करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले का आरोप, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल रॉय पर शारदा घोटाले में पैसा लेकर चिटफंड कंपनी फेवर देने का आरोप लगा, लेकिन भाजपा में जाते ही इन सभी का दाग धुल गया।

भाजपा में वरिष्ठ नेताओं को कोई नहीं पूछ रहा: शेखावत
उधर, पूर्व विधायक और वरिष्ठ नेता भंवरसिंह शेखावत ने कहा है कि दो-तीन नेता पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चला रहे हैं। कई वरिष्ठ नेताओं समेत मुझे भी बैठक में नहीं बुलाया गया। मैंने इस बात की जानकारी तोमर को भी दी है। मैंने उन्हें यह भी कह दिया है, कि यदि इसी तरह से वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया, तो चुनाव में पार्टी को नुकसान होगा। दरअसल, जनसंघ से लेकर भाजपा के आज तक के  सफर में जिन तीन पीढिय़ों ने पूरी निष्ठा के साथ काम करके, पार्टी को इस स्तर पर पहुंचाया। वह आज उपेक्षित होकर घर पर बैठे हुए हैं। गरीबी और बदहाली का जीवन बिता रहे हैं। सत्ता दलालों के हाथ में चली गई है। चुनाव जब आते हैं तब दिखावे का सम्मान करके, चुनाव में उनका लाभ लेते हैं, फिर भूल जाते हैं। भाजपा अब कार्यकर्ताओं की पार्टी नहीं रही। भाजपा के वरिष्ठजन कहने लगे हैं, सत्ता में बैठे लोग उपयोग करते हैं। और कचरे में डाल देते हैं। यदि यही स्थिति रही, तो आगे पार्टी और संगठन का भविष्य भी अच्छा नहीं रहेगा। इस तरह वह अपनी नाराजगी स्पष्ट रूप से दर्शाने लगे हैं।

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