अब कोई जल्लाद नहीं
प्रदेश में आखिरी बार पुलिस विभाग के सिपाही बालकृष्ण वाडेकर ने 1996 में इंदौर और 1997 में जबलपुर में अपराधियों को फांसी दी थी। वाडेकर की अब मौत हो चुकी है। इसके बाद से प्रदेश में कोई भी जल्लाद नहीं है। जेल विभाग के अनुसार जल्लाद की भर्ती नहीं की गई है। जरूरत पड़ने पर प्रदेश के बाहर से बुलाकर जल्लाद की सेवाएं लेने का भी प्रविधान है। जेल विभाग के अनुसार प्रदेश में मौत की सजा पाए दोषियों की कोई भी दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में प्रदेश में लंबित फांसी की सजा के संबंध में मात्र एक रिट पिटिशन लंबित है जिसमें, दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने इंदौर में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के तीन लोगों ने सजा कम करने के लिए अपील कर रखी है। सेंट्रल जेल में कड़ी सुरक्षा के बीच बंद सिमी सरगना सफदर नागोरी सहित आठ सिमी आतंकियों को 2008 के अहमदाबाद बम धमाके के मामले में वर्ष 2020 में गुजरात के कोर्ट ने वर्चुअल सुनवाई के बाद मौत की सजा सुनाई थी। इस बम धमाके में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक घायल हुए थे। हाल ही में इंदौर में सात वर्षीय बच्ची की हत्या के दोषी सद्दाम खान को मृत्युदंड की सजा दी गई है।
सजायाफ्ता कैदी पर 35 हजार का होता है खर्च
जेल सूत्रों के मुताबिक जेलों में बंद सजायाफ्ता कैदियों पर हर साल प्रति कैदी 35 हजार रुपए के करीब खर्च होता है। इनके खान-पान का खर्च तो बहुत कम होता है ,लेकिन सबसे ज्यादा खर्च उनकी सुरक्षा पर होता है। अहमदाबाद ब्लास्ट में फांसी की सजा पाने वाले सिमी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा पर ही अब तक लाखों खर्च हो चुका है और अभी जो प्रस्ताव तैयार हो रहे हैं, वे भी करोड़ों में जाएंगे। गौरतलब है कि फांसी की सजा प्राप्त व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर होने पर सरकार से सहायता मांगता है तो उसे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की सहायता से अपील में मुफ्त में कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है। इसका सारा भुगतान सरकार करती है।
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