सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर लॉ इंटर्न सोनू मंसूरी को दी जमानत

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के जिला न्यायालय में सुनवाई के दौरान वीडियो बनाने के मामले में गिरफ्तार लॉ इंटर्न सोनू मंसूरी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता स्वर्गीय एहतेशाम हाशमी जब इंदौर के जिला कोर्ट में पैग़ंबर ए  इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब की शान में गुस्ताखी करने वाले आरोपियों की जमानत का विरोध कर रहे थे तभी जमानत के लिए उपस्थित वकील और उनके बीच कहासुनी हो गई थी एहतेशाम हाशमी के न्यायालय से चले जाने के बाद लॉ इंटर्न सोनू मंसूरी को अधिवक्ताओं के दल ने पकड़कर यह आरोप लगाया था कि वह कोर्ट परिसर में वीडियो रिकॉर्ड कर रही है और यह वीडियो वह प्रतिबंधित संगठन यह पीएफआई  को भेजने वाली थी अभिभाषक संघ के सदस्य सुरेंद्र सिंह की शिकायत पर एमजी रोड पुलिस थाने में  में एफ आई आर दर्ज हुई थी गौरतलब है कि 28 जनवरी 2023 को इंदौर जिला न्यायालय में उस वक्त हंगामा मच गया था जब कुछ वकीलों ने एक ला इंटर्न को कोर्ट की कार्रवाई केe बाद अधिवक्ताओं ने पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया था जिसमे सोनी मंसूरी को पकड़ने वाले अधिवक्ताओं ने आरोप लगाया था कि  यह ला इंटर्न कोर्ट के  दस्तावेजों के फोटोग्राफ भी ले रही थी। हंगामे के बाद पुलिस ने इस ला इंटर्न को हिरासत में ले लिया था। इसके बाद से वह जेल में है। जिला न्यायालय ने  इस ला इंटर्न को जमानत देने से इंकार कर दिया था।

यह हुआ सुप्रीम कोर्ट में

इंदौर की एक लॉ इंटर्न सोनू मंसूरी ने अपनी जमानत का आवेदन शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए  लगाया था जिसमे आरोप लगाया था कि उस पर इंदौर कोर्ट परिसर और पुलिस में एक समूह ने हमला किया था। पुलिस ने बजाए बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई करने के, उसे ही गिरफ्तार कर लिया।

22 मार्च बुधवार को जमानत आवेदन की सुनवाई में सबसे बड़ा मसला यह रहा कि मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने बुधवार को स्वीकार किया कि मंसूरी को जमानत पर रिहा किया जा सकता है। उन्होंने  कहा, “हालांकि उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी गई है, लेकिन मैं रास्ते में नहीं खड़ा होना चाहता। कृपया उसे जमानत पर रिहा करें।”  सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने  इस मामले में आदेश देते हुए कहा कि एसजी को जमानत अर्जी पर गंभीर आपत्ति नहीं है। याचिकाकर्ता नंबर 2 को न्यायालय की संतुष्टि के लिए 5000 रुपये के निजी मुचलके पर तत्काल जमानत पर रिहा किया जाए। आदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को सूचित किया जाएगा।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल किया था आवेदन

“याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि एएसजी ने “बहुत निष्पक्ष” रुख अपनाया है।मंसूरी और उनकी  सीनियर एडवोकेट  नूरजहां, दोनों मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं। उन्होंने अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि उनके खिलाफ मामला सांप्रदायिक रूप से प्रेरित है।याचिकाकर्ता वकील पर हमले के आरोपों पर एएसजी नटराज ने निर्देश लेने के लिए और समय मांगा।रिट याचिका में आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ताओं – वकील नूरजहां और लॉ स्टूडेंट सोनू मंसूरी को झूठे, आधारहीन, राजनीति से प्रेरित और सांप्रदायिक रूप से लगाए गए आरोप के मामलों में स्थानीय संगठनों के इशारे पर फंसाया गया है, जो मध्य प्रदेश राज्य में वर्तमान राजनीतिक विवाद से जुड़े हैं।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि 28.01.2023 को एडवोकेट एसोसिएशन से जुड़े वकीलों के एक समूह के साथ बजरंग दल के समर्थकों ने कोर्ट रूम के अंदर लॉ इंटर्न के साथ मारपीट की। उन्होंने इंटर्न पर बजरंग दल के एक नेता की जमानत की कार्यवाही को गुप्त रूप से रिकॉर्ड करने का आरोप लगाया, जिस पर फिल्म ‘पठान’ के विरोध में तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया गया था।

याचिका के अनुसार, लॉ इंटर्न की जबरन तलाशी ली गई और बदमाशों ने उसके पास से बड़ी रकम और एक फोन छीन लिया। याचिका में कहा गया है कि स्थानीय पुलिस मौके पर आई, लेकिन बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय इंटर्न को पुलिस स्टेशन ले गई और शिकायत के आधार पर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की कि वह पीएफआई और पीस जैसे प्रतिबंधित संगठनों के लिए काम कर रही है। एफआईआर में आईपीसी की धारा 419, 420 और 120बी के तहत दंडनीय अपराधों का जिक्र है।

इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। 29.01.2023 को न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने पर 01.02.2023 तक रिमांड मंजूर किया गया। बदमाशों द्वारा बनाए गए “सांप्रदायिक रूप से शत्रुतापूर्ण माहौल” के बीच किसी भी वकील ने इंटर्न की ओर से पेश होने की हिम्मत नहीं की।

याचिका में कहा गया है कि चूंकि स्थानीय वकीलों ने उसका बचाव करने से इनकार कर दिया, इसलिए चार वकीलों को जमानत अर्जी दाखिल करने के लिए दिल्ली से जाना पड़ा। चारों वकीलों ने पुलिस सुरक्षा मांगी, लेकिन उन्हें इससे इनकार कर दिया गया। यहां तक ​​कि उन्हें कोर्ट की सुनवाई में शामिल होने से भी रोका गया। पुलिस रिमांड दिनांक 04.02.2023 तक बढ़ाई गई। जब वकीलों ने स्थानीय बार एसोसिएशन से सदस्यों को अपने साथ हुए व्यवहार के बारे में सूचित करने के लिए संपर्क किया तो सदस्यों ने अपनी लाचारी व्यक्त की। बाद में उन्हें एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा धमकी दी गई और तुरंत इंदौर छोड़ने के लिए कहा गया।

वकील स्थानीय थाने गए, लेकिन अधिकारियों ने उनकी बात नहीं सुनी। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की तो वकील दिल्ली लौटने को मजबूर हो गए। कानूनी प्रतिनिधित्व के अभाव में इंटर्न को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

याचिका में इंदौर जिला न्यायालय परिसर में हुई घटना की स्वतंत्र जांच के लिए शीर्ष अदालत से निर्देश मांगा गया। यह अनुरोध किया गया कि हाईकोर्ट के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश को जांच सौंपी जाए। याचिका में याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने की भी मांग की गई।

 

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