भोपाल । सरकार की मुफ्त बिजली योजना के चलते बिजली कंपनियों को हो रहे घाटे की पूर्ति के लिए 1 अप्रैल से बिजली की नई दरें लागू होंगी, जिसके तहत तकरीबन 10 पैसे यूनिट की वृद्धि की जाएगी। हालांकि चुनावी वर्ष होने के कारण पहली बार इतनी कम वृद्धि हुई है। प्रदेश की बिजली कंपनियों ने नवंबर 2022 में नियामक आयोग के सामने लंबे घाटे और लगातार विद्युत उत्पादन में बढ़ रहे खर्च को दर्शाते हुए बिजली दर में 3.2 फीसदी (तकरीबन 20 से 25 पैसे प्रति यूनिट) वृद्धि का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद नियामक आयोग में भोपाल, जबलपुर, इंदौर में दावे-आपत्ति की औपचारिकता की गई और 1 अप्रैल से बिजली की नई दरें लागू करते हुए 10 से 12 पैसे प्रति यूनिट की वृद्धि पारित की गई। नई दरवृद्धि से प्रदेश सरकार को सालाना साढ़े 500 से 600 करोड़ रुपए के अतिरिक्त बिजली बिल में राजस्व प्राप्त होगा।
मुफ्त बिजली ने बनाया कर्जदार
मप्र देश में सबसे अधिक बिजली उत्पादकों राज्यों में से एक है। इसके बावजुद यहां के उपभोक्ताओं को सबसे अधिक बिजली मिलती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश की तीनों बिजली कंपनियों पर 48 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है। यह कर्ज मुफ्त की बिजली यानी संबल योजना के कारण बढ़ा है। मप्र ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों की स्थिति यही है। पावर मिनिस्ट्री के आंकड़ों से पता चलता है कि 36 में से 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश उपभोक्ताओं को सब्सिडी वाली बिजली प्रदान कर रहे हैं, जिसमें कम से कम 1.32 लाख करोड़ रुपए देश भर में अकेले 2020-21 वित्तीय वर्ष में खर्च किए गए हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक ने 36.4 प्रतिशत या 48,248 करोड़ की सबसे ज्यादा बिजली सब्सिडी दी। तीन साल के डेटा एनालिसिस से पता चलता है कि दिल्ली ने 2018-19 और 2020-21 के बीच अपने सब्सिडी एक्सपेंडिचर में 85 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी। ये 2018-19 में 1,699 करोड़ रुपए थी जो बढ़कर 3,149 करोड़ रुपए हो गई। ये सभी राज्यों में दूसरी सबसे अधिक है। मणिपुर ने इन तीन वर्षों में बिजली सब्सिडी में सबसे बड़ी 124 प्रतिशत की उछाल देखी गई। 120 करोड़ रुपए से बढ़कर ये 269 करोड़ पर पहुंच गई।
सरकार ने नहीं दिए 3000 करोड़
मप्र की बात करें तो यहां 2018 के चुनाव के दौरान भाजपा सरकार ने संबल योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत संबल बिल माफी ने मप्र की तीनों बिजली वितरण कंपनियों का कर्ज अरबों रुपए बढ़ा दिया है। जानकारी के अनुसार सरकार ने जो संबल योजना शुरू की है उसके कारण बिजली कंपनियों पर लगातार बोझ बढ़ रहा है। सरकार द्वारा इसकी भरपाई होनी थी, लेकिन मप्र सरकार ने अब तक करीब 3000 करोड़ रुपए नहीं दिए। बिजली मामलों के जानकार व रिटायर्ड एडीशनल चीफ इंजीनियर राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि कर्ज बढ़ने की यह बड़ी वजह थी। सरकार इसकी भरपाई करती तो उपभोक्ताओं पर भार कम होता। अग्रवाल ने बिजली कंपनियों के टैरिफ प्रस्तावों पर कहा कि वे 3 प्रतिशत प्रति यूनिट दर बढ़ाना चाहती हैं, जबकि बड़े कर्जों को छोड़ भी दिया जाए तो आज की तारीख में कंपनियां करीब 5 हजार करोड़ के फायदे में हैं। उन्हें तो 10 प्रतिशत तक राशि कम करना चाहिए। बहरहाल, कर्जों की बात है तो 2017-18 से लेकर 2021-22 तक कंपनियों पर कर्ज 11625 करोड़ बढ़ा है। कुल कर्ज अब 48 हजार करोड़ से अधिक है। यह नाबार्ड, आरईसी व अन्य वित्तीय कंपनियों का पैसा है। कर्ज की यह जानकारी सरकार ने विधानसभा को दी है।
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