पुलिस अधिकारी ने बताया कि बच्चों के शरीर पर कुत्तों के नोंचने के इतने निशान थे कि उन्हें गिना नहीं जा सकता था। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि बच्चों के शरीर पर कुत्ते व अन्य जानवरों के नोंचने के काफी निशान हैं। हालत ये थी कि कई अंग अलग हो गए थे।
दक्षिण-पश्चिमी जिले के पुलिस अधिकारियों व पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों ने दोनों भाई आनंद व आदित्य के शव देखे तो रोंगटे खड़े गए। पुलिस अधिकारी ने बताया कि बच्चों के शरीर पर कुत्तों के नोंचने के इतने निशान थे कि उन्हें गिना नहीं जा सकता था। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि बच्चों के शरीर पर कुत्ते व अन्य जानवरों के नोंचने के काफी निशान हैं। हालत ये थी कि कई अंग अलग हो गए थे।
अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजीव कुमार ने बताया कि बच्चों के पिता पवन मूलरूप से गोसाई नगर, प्रयागराज के रहने वाले हैं। वे दिव्यांग व मानसिक रूप से कमजोर हैं। इस कारण वह पैतृक जगह गोसाई नगर में ही रहते हैं। पत्नी सुषमा तीन बच्चों को लेकर ब्यूटी पॉर्लर की नौकरी के लिए दिल्ली आ गई थी। तीन बच्चों को संभालना मुश्किल था इस कारण पति को दिल्ली लेकर नहीं आई थी। अभी तक की जांच में इससे पहले कुत्तों के किसी इंसान पर हमला करने की बात सामने नहीं आई है।
जांच व स्थानीय लोगों से पूछताछ में ये बात सामने आई है कि घटना को अंजाम देने वाले कुत्ते बकरी व सुअरों पर हमला कर चुके हैं। अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त ने घटना के संबंध में नगर निगम को रविवार शाम को पत्र लिखा व अधिकारियों को फोन कर सूचित भी कर दिया। पत्र में कहा गया है कि वसंतकुंज इलाके में कुत्तों के नोचने से दो बच्चों की मौत हुई है। ये कुत्ते इंसानी जीवन के लिए खतरनाक होते जा रहे हैं। ऐसे में इलाके से इन कुत्तों को हटाया जाए। दिल्ली पुलिस ने इलाके में रहने वाले लोगों को सलाह दी है कि वह सतर्क रहें और बच्चों को घरों से बाहर न निकलने दें।
मांस फेंकने से कुत्ते हो रहे खूंखार
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि रंगपुरी पहाड़ी में मीट की काफी दुकानें हैं। ये लोग कचरे को कैंप व रंगपुरी पहाड़ी के आसपास स्थित जंगल में फेंक देते हैं। इस कचरे में से मांस कुत्ते खाते हैं। इस कारण ये कुत्ते खूखार हो रहे हैं।
लावारिस कुत्तों का आतंक बना नासूर
राजधानी वासियों के लिए लावारिस कुत्तों का आतंक नासूर बन चुका है। लावारिस कुत्ते हर सौ से अधिक लोगों पर हमला कर देते हैं। इसके बावजूद स्थानीय निकाय कानून व नियम सख्त होने के कारण कदम नहीं उठा पाते। वे केवल इन कुत्तों की नसबंदी कर सकते हैं। हालांकि, यह कार्य भी तेज नहीं चल रहा है। ऐसे में लावारिस कुत्तों की संख्या बढ़ती जा रही है।
कॉमनवेेल्थ गेम्स से पहले कुत्तों की संख्या में अंकुश लगाने की पहल की गई थी। वर्ष 2007 में लावारिस कुत्तों की संख्या पता करने के लिए सर्वे किया गया था। इस दौरान सड़कों पर करीब पांच लाख लावारिस कुत्ते होने की जानकारी मिली थी। इसके बाद कुछ एनजीओ की मदद से नसबंदी करने की पहल शुरू की गई थी। शुरुआत में हर वर्ष 20 से 30 हजार कुत्तों की नसबंदी हुई, लेकिन अब प्रतिवर्ष 50-60 हजार कुत्तों की नसबंदी की जा रही है। वहीं, वर्ष 2007 के बाद कुत्तों की संख्या का पता लगाने के लिए कोई सर्वे नहीं हुआ, लेकिन एक अनुमान के अनुसार राजधानी में अभी करीब 7 लाख लावारिस कुत्ते हो सकते हैं।
नसबंदी अभियान आरंभ होने के बावजूद कुत्तों की संख्या में कमी आने की जगह बढ़ोतरी हुई है। बताया जा रहा है कि वर्तमान में मौजूद लावारिस कुत्तों में से आधे से अधिक की नसबंदी नहीं हुई है। प्रतिवर्ष जितने कुत्तों की मौत होती है, उससे अधिक लावारिस कुत्ते पैदा हो जाते हैं। शिकायतों के बावजूद लावारिस कुत्तों के आतंक से लोगों को छुटकारा नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि कानून व नियम के तहत इन कुत्तों की केवल नसंबदी की जा सकती है और अन्य क्षेत्र में छोड़ा नहीं जा सकता।
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