दिल्ली । जीवन भर की गाढ़ी कमाई लगाकर जिन लोगों ने महरौली में अपना आशियाना बनाया, उन्हें नहीं पता था कि एक दिन यह ताश के पत्तों की तरह ढह जाएगा। सरकारी जमीनों पर जिस तरह से इमारतें खड़ी कर दी गईं और इन इमारतों की रजिस्ट्री भी हो गई, उसके बाद विभिन्न विभागों के अधिकारियों की कार्यप्रणाली कटघरे में है।अब सवाल केवल सीमांकन में विसंगति का ही नहीं है, बल्कि यह भी है सरकारी जमीन जब इमारतें खड़ी हो रहीं थी, तब ये अधिकारी कहां सो रहे थे। डीडीए, एएसआइ, दिल्ली पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारियों से लोग सवाल पूछ रहे हैं तो उपराज्यपाल उनकी संलिप्तता की जांच कर रहे हैं। महरौली में करीब 20 एकड़ क्षेत्र अतिक्रमण की जद में है।
इसका बड़ा हिस्सा नेशनल आर्कियोलाजिकल पार्क के प्रतिबंधित क्षेत्र का है। द एनशिएंट मान्यूमेंट्स एंड आर्कियोलाजिकल साइटस एंड रिमेंस (अमेडमेंट) बिल- 2017 के अनुसार ऐतिहासिक स्मारकों की सुरक्षा को देखते हुए इनके आसपास प्रतिबंधित क्षेत्र में कोई निर्माण नहीं किया जा सकता। इसी के मद्देनजर यहां सीमांकन किया गया और उसी के अनुरूप तोड़फोड़ शुरू की गई, लेकिन चार-पांच दिनों के हंगामे के बाद भी केवल चार हजार वर्ग मीटर जमीन से ही अतिक्रमण हटाया जा सका है।सूत्रों के अनुसार इस प्रकरण में किसी एक विभाग या अधिकारी को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता।
नीचे से ऊपर तक अधिकारियों की पूरी शृंखला है। यह सभी निर्माण एक दिन या कुछ माह में नहीं हुए बल्कि सालों साल यह कार्य चलता रहा है। ऐसे में डीडीए, एएसआइ, दिल्ली पुलिस और राजस्व विभाग के सभी के अधिकारियों की भूमिका को गलत कहा जा रहा।डीडीए के अधिकारी अपनी जमीन नहीं संभाल सके तो एएसआइ ने प्रतिबंधित क्षेत्र में भी अतिक्रमण होने दिया। दिल्ली पुलिस ने अवैध निर्माण रोकने की जहमत नहीं उठाई और राजस्व विभाग के सब रजिस्ट्रार कार्यालय से यहां बनी इमारतों की रजिस्ट्री तक कर दी गई। 2016 से अभी तक डीडीए में पांच आइएएस अधिकारी उपाध्यक्ष के रूप में तैनात रहे।उधर, 2019 से अभी तक तीसरे भूमि प्रबंधन आयुक्त कार्य संभाल रहे हैं। मामले में भूमि प्रबंधन विभाग की लापरवाही सीधे तौर पर सामने आ रही है। हालांकि डीडीए अधिकारियों का कहना है कि दो बार पूर्व में भी अवैध निर्माण हटाए गए थे। सच यह है कि कार्रवाई के नाम पर बस नोटिस चस्पा किए गए।
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