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नरसंहार नहीं, बल्कि आतंकी हैं दफन… सामने आई कश्मीर की 4,056 कब्रों की सच्चाई

नॉर्थ कश्मीर की तथाकथित मास ग्रेव्स यानी सामूहिक कब्रों को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं. इस बात पर कई बार चर्चा हुई है कि यह कब्रें किस की हैं. वहीं, कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह नैरेटिव पेश किया गया कि घाटी में बड़ी संख्या में निर्दोष नागरिकों को मारकर गुपचुप दफनाया गया. लेकिन, अब कश्मीर के ही एक एनजीओ ने एक स्टडी में इन कब्रों की सच्चाई सामने रख दी है. साथ ही सालों से इन कब्रों को लेकर किए जा रहे दावों को चुनौती देने का काम किया है.

इस स्टडी में बताया गया है कि जांच की गई 4,056 बिना चिह्न वाली कब्रों में से 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्रें विदेशी और स्थानीय आतंकियों की हैं. कश्मीर स्थित एनजीओ सेव यूथ सेव फ्यूचर फाउंडेशन (SYSFF) ने यह स्टडी की है. इस रिपोर्ट का नाम सच का पर्दाफाश: कश्मीर घाटी में बिना चिह्न और अज्ञात कब्रों का गंभीर अध्ययन है.

373 कब्रिस्तानों का किया सर्वे

वजहत फारूक भट, ज़ाहिद सुल्तान, इरशाद अहमद भट, अनिका नाज़िर, मुदस्सिर अहमद दर और शबीर अहमद के नेतृत्व में यह रिसर्च की गई. नॉर्थ कश्मीर के बारामूला, कुपवाड़ा और बांदीपोरा और मध्य कश्मीर के गांदरबल में स्थित 373 कब्रिस्तानों का सर्वे करके दस्तावेज़ तैयार किए. वजहत फारूक भट ने कहा, यह प्रोजेक्ट 2018 में शुरू किया था और 2024 में इसका फील्डवर्क पूरा किया. इसके बाद हम रिपोर्ट को विभिन्न सरकारी कार्यालयों में पेश करने की तैयारी कर रहे हैं.

रिपोर्ट में क्या-क्या सामने आया

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 2,493 कब्रें (लगभग 61.5 प्रतिशत) विदेशी आतंकियों की पाई गईं, जिन्हें सुरक्षाबलों की ओर से चलाए गए आतंकवाद-रोधी अभियानों में मार गिराया गया था. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इन आतंकियों के पास पहचान पत्र नहीं थे ताकि वो अपने नेटवर्क को छिपा सकें और पाकिस्तान अपनी भूमिका से इनकार कर सके.

करीब 1,208 कब्रें (लगभग 29.8 प्रतिशत) स्थानीय कश्मीरी आतंकियों की पाई गईं, जिन्हें सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ों में मार गिराया गया. इनमें से कई कब्रें समुदाय की गवाहियों और परिवारों की ओर से पुष्टि किए जाने से पहचानी गईं.

रिसर्चर्स को सिर्फ 9 निश्चित नागरिकों की कब्रें मिलीं, जो कुल का सिर्फ 0.2 प्रतिशत है. संगठन SYSFF के अनुसार, यह निष्कर्ष सीधे तौर पर उन दावों का खंडन करता है जिनमें कहा गया था कि ये नागरिकों की सामूहिक कब्रें हैं. स्टडी में 1947 के कश्मीर युद्ध के दौरान मारे गए 70 जनजातीय आक्रमणकारियों की कब्रों की पहचान भी की गई, जो क्षेत्र में संघर्ष से जुड़ी कब्रों का ऐतिहासिक प्रमाण है.

276 कब्रों की नहीं हुई पहचान

वजहत फारूक भट ने कहा कि 276 असल में बिना चिह्न वाली कब्रों की आधुनिक डीएनए जांच के साथ फोरेंसिक जांच की जानी चाहिए ताकि मानवीय चिंताओं का समाधान हो सके. इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए रिसर्चर्स ने इंटरव्यू लिए, जिनमें विभिन्न पक्षों को शामिल किया गया, जैसे- स्थानीय धर्मगुरु और औकाफ मस्जिद समितियों के सदस्य, दशकों का अनुभव रखने वाले कब्र खोदने वाले, स्थानीय आतंकियों और लापता लोगों के परिवार, लंबे समय से रह रहे ऐसे निवासी जिन्हें स्थानीय दफनाने की परंपराओं का ज्ञान है और आत्मसमर्पण कर चुके या रिहा हुए पूर्व आतंकी.

कई दावों का किया खंडन

रिपोर्ट ने उन दावों का खंडन किया जो कुछ वकालती समूहों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की ओर से किए गए थे, जिनमें इन कब्रों को राज्य की ओर से किए गए अत्याचारों का प्रमाण बताया गया था. रिपोर्ट का तर्क है कि इनके निष्कर्ष बताते हैं कि इस तरह की कहानियों को जमीन पर मिले साक्ष्यों का समर्थन नहीं है. वजहत फारूक भट ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि नीति संबंधी निर्णय लेने से पहले ऐसे दावों की व्यवस्थित जांच की मांग की जाए.

पाकिस्तान को करनी चाहिए पहचान

इसमें कहा गया कि पाकिस्तान को अपने नागरिकों की पहचान करनी चाहिए जो विदेशी आतंकियों के रूप में कश्मीर में दफन हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानवीय नियमों के तहत परिवारों से मिलने की सुविधा देनी चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया, पाकिस्तानी राज्य द्वारा इन व्यक्तियों से इनकार करना और उन्हें छोड़ देना एक बड़ी मानवीय विफलता है, जिसने न केवल कश्मीरी समुदायों की पीड़ा को बढ़ाया है, बल्कि उन पाकिस्तानी परिवारों की पीड़ा भी लंबी कर दी है जो कभी नहीं जान पाएंगे कि उनके प्रियजन का क्या हुआ.

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