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पंजाब

बर्ल्टन पार्क स्पोर्ट्स हब प्रोजेक्ट फिर विवादों में, नगर निगम कर बैठा ये बड़ी गलती!

जालंधर : जालंधर नगर निगम की लचर कार्यप्रणाली और अधिकारियों की अज्ञानता ने एक बार फिर बर्ल्टन पार्क स्पोर्ट्स हब प्रोजेक्ट को विवादों के घेरे में ला खड़ा किया है। 17 साल पहले शुरू हुआ यह प्रोजैक्ट, जो पहले ही कई बार ठेकेदारों के विवाद और कानूनी अड़चनों के चलते अटक चुका है, अब निगम की अफसरशाही की नालायकी के कारण नए संकट में फंस गया है।

पर्यावरण से संबंधित नियमों और हाई कोर्ट के पुराने आदेशों की अनदेखी कर निगम ने 56 पेड़ काटने की नीलामी का विज्ञापन प्रकाशित कर दिया, जिससे स्थानीय लोगों में भारी रोष फैल गया। निगम के अधिकारियों को न तो पुराने कानूनी दस्तावेजों की जानकारी थी और न ही उन्होंने सत्तापक्ष के नेताओं को इस संवेदनशील मामले की गंभीरता से अवगत कराया।

पिछली घटनाओं से जरा सा भी सबक नहीं लिया

करीब 12 साल पहले बर्ल्टन पार्क वेलफेयर सोसायटी ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर कर स्पोर्ट्स हब के निर्माण के दौरान पेड़ों की कटाई पर रोक लगवाई थी। तब निगम ने कोर्ट में शपथपत्र देकर वादा किया था कि कोई भी पेड़ नहीं काटा जाएगा और एनवायर्नमेंटल इंपैक्ट कमेटी की मंजूरी ली जाएगी। लेकिन आज, जब प्रोजेक्ट को दोबारा शुरू करने की कोशिश की गई, तो निगम के नए अधिकारियों ने पुरानी फाइलों को खोलने की जहमत तक नहीं उठाई। नतीजतन, 56 पेड़ों की कटाई का विज्ञापन छपते ही मामला फिर से हाई कोर्ट की ओर बढ़ गया है।

बर्ल्टन पार्क में जब नीलामी की प्रक्रिया शुरू हुई, तो स्थानीय निवासियों और बर्ल्टन पार्क वैल्फेयर सोसायटी के महासचिव हरीश शर्मा ने मौके पर पहुंचकर अधिकारियों को कोर्ट के पुराने आदेशों की याद दिलाई। नीलामी रद्द होने की घटना निगम की अफसरशाही की लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना रवैये का जीता-जागता सबूत है।

निगम के अफसरों ने सत्तापक्ष को भी रखा अंधेरे में

आम आदमी पार्टी के मेयर वनीत धीर, आप नेता नितिन कोहली और आप सांसद डॉ. अशोक मित्तल ने इस प्रोजैक्ट को दोबारा शुरू करवाने के लिए दिन-रात मेहनत की थी। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसका उद्घाटन कर इसे अपनी सरकार की उपलब्धि के रूप में पेश किया था। लेकिन निगम के अधिकारियों ने पर्यावरण से जुड़े इस संवेदनशील मामले में न तो सत्तापक्ष के नेताओं को समय रहते सूचित किया और न ही पुराने कानूनी दस्तावेजों की पड़ताल की। नतीजतन, यह प्रोजैक्ट अब एक बार फिर अनिश्चितता के भंवर में फंस गया है। निगम की ओर से पर्यावरण नियमों की अनदेखी और पुराने कोर्ट आदेशों की अवहेलना ने इस प्रोजैक्ट को फिर से संकट में डाल दिया है।

नगर निगम की इस नालायकी ने न केवल शहर के विकास को ठेस पहुंचाई है, बल्कि आम आदमी पार्टी की सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए हैं। अब सवाल यह है कि क्या निगम के अधिकारी अपनी गलती सुधारकर इस प्रोजैक्ट को बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए पूरा कर पाएंगे या यह प्रोजैक्ट एक बार फिर सालों के लिए ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

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