सिवनी
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया पर उठे सवाल: बाघ शिकार के बाद मीडिया वर्कशॉप पर हंगामा

राष्ट् चंडिका न्यूज़,सिवनी, हाल ही में भारत सरकार की खुफिया एजेंसी डी.आर.आई. (डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस) द्वारा बाघ के शिकारियों की गिरफ्तारी के बाद, वन्यजीव संरक्षण संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया (WWF India) पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि संस्था वन्यजीवों के संरक्षण के लिए मिलने वाली भारी-भरकम राशि का सदुपयोग करने के बजाय, अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने का असफल प्रयास कर रही है।
डी.आर.आई. का खुलासा और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया की भूमिका पर प्रश्नचिह्न

पूछताछ में आरोपियों ने चौंकाने वाला खुलासा किया कि उन्होंने लगभग 15 दिन पहले एक बाघ का शिकार किया था और उसके शव को पेंच बफर क्षेत्र के खापा गांव के राजस्व क्षेत्र में दफना दिया था। यह घटना डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जो वन्यजीव संरक्षण के लिए करोड़ों रुपये प्राप्त करती है।
मीडिया कार्यशाला: नाकामियों पर पर्दा डालने का प्रयास?
हाल ही में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया द्वारा मीडिया कर्मियों के लिए एक कार्यशाला आयोजित की गई थी, जिसका उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण की बात करना था। हालांकि, इस कार्यशाला को लेकर स्थानीय मीडिया और जनता में यह धारणा बन रही है कि यह संस्था की वास्तविक नाकामियों को छुपाने और सरकारी राशि का “बंदरबांट” करने का एक असफल प्रयास है।
सवाल यह उठता है कि जब पेंच बफर क्षेत्र में शिकारियों ने बाघ का शव दफनाया था, तब डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया कहाँ थी? संस्था को वन्यजीव संरक्षण और पृथ्वी की जैव विविधता के लिए भारी-भरकम राशि स्वीकृत की जाती है, लेकिन आरोप है कि संस्था के पदाधिकारी पेंच टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह जैसे अधिकारियों के संरक्षण में केवल “रस्म अदायगी” कर रहे हैं।
उठते सवाल: डिप्टी डायरेक्टर से जवाब क्यों नहीं?
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के पदाधिकारियों को मीडिया के साथ कार्यशाला आयोजित करने के बजाय, उन्हें डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह से यह पूछना चाहिए था कि आखिर उनकी निगरानी में शिकारियों ने बाघ का शिकार कैसे किया और उसके अवशेषों को पेंच बफर के खापा गांव में दफना दिया, और उन्हें इसकी भनक तक कैसे नहीं लगी।
यह पूरी घटना प्रमाणित करती है कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया से जुड़े लोगों को जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है और वे केवल कागजी कार्रवाई और दिखावे तक ही सीमित हैं। वन्यजीव संरक्षण के नाम पर हो रही इस लापरवाही पर नकेल कसना अत्यंत आवश्यक है।