सपा के सबसे मजबूत वोट बैंक पर चोट देने की तैयारी, पंचायत चुनाव से BJP साधेगी 2027 के लिए मुस्लिम सियासत

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अभी से ही 2017 और 2022 की तरह 2027 में चुनावी नतीजे दोहराने की कवायद में जुट गई है. बीजेपी की नजर सपा के सबसे मजबूत और हार्डकोर मुस्लिम वोटबैंक पर है. सपा इसी वोटबैंक के दम पर सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठी है तो बीजेपी उसमें सेंधमारी कर सत्ता की हैट्रिक लगाने के फिराक में है. बीजेपी ने अपने मंसूबे को पूरा करने के लिए पंचायत चुनाव में मुसलमानों पर बड़ा दांव खेलने का प्लान बनाया है, जिसकी सियासी एक्सरसाइज भी शुरू कर दी है.
मुस्लिम सियासत पर बीजेपी ने बदली रणनीति
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न ने पहले 2022 के विधानसभा और उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सियासी तौर पर झटका दिया. मुसलमानों को साधने में बीजेपी का ना ही शिया दांव, न ही सूफी दांव और न ही पसमांदा दांव अभी तक सफल रहा है. बीजेपी को हराने वाले सियासी पैटर्न पर ही मुस्लिम सपा को एकमुश्त वोट देते आ रहे हैं. बीजेपी ने मुस्लिम वोटिंग पैटर्न को देखते हुए अपनी रणनीति में बदलाव किया है तथा अब पंचायत चुनाव में सियासी मदद देने और उसके बदले 2027 में उनके समर्थन जुटाने की स्ट्रैटेजी बनाई है.
बीजेपी की नजर पंचायत चुनाव में मुस्लिम आबादी बहुल गांवों पर है. बीजेपी इन गांवों में मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाने की तैयारी में है. यूपी में छोटे-बड़े करीब एक लाख गांव हैं, जिसमें 57,695 ग्राम पंचायत हैं. इन्हीं ग्राम पंचायत में प्रधान भी चुने जाते हैं. यूपी में तकरीबन 7 हजार ग्राम पंचायत हैं, जहां पर मुस्लिम समाज से प्रधान चुने जाते रहे हैं और आठ हजार से ज्यादा बीडीसी सदस्य मुस्लिम चुने जाते हैं.
भगवा पार्टी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल मुस्लिम बहुल गांव हैं, जहां मुस्लिम आबादी 80 फीसदी से ज्यादा है. हिंदू बहुल इलाके में बीजेपी अपने कोर वोटर के साथ अन्य दूसरी जातियों का समीकरण साधकर सफल रहती है, लेकिन मुस्लिम इलाके में फेल हो जाती है. यही वजह है कि बीजेपी इन मुस्लिम बहुल ग्राम पंचायत सीटों पर मुस्लिम समुदाय के नेताओं को चुनाव लड़ाने और उनकी मदद करने की प्लानिंग बना रही है.
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ने संभाला मोर्चा
यूपी के मुस्लिम बहुल इलाके में बीजेपी ने अपनी सियासी जड़े जमाने के लिए पंचायत चुनाव को लेकर खास प्लान बनाया है, जिसकी जिम्मेदारी बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के कंधों पर है. यूपी बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने टीवी-9 डिजिटल से बातचीत करते हुए यूपी के हर जिले से ऐसे गांव का डाटा जुटाने का काम कर रहे हैं, जहां पर मु्स्लिम समुदाय से ही प्रधान और बीडीसी सदस्य चुने जाते रहे हैं. इन मुस्लिम बहुल गांव में मुस्लिम प्रत्याशी को पंचायत चुनाव लड़ाने और हरसंभव मदद करने की रूपरेखा बना रहे हैं.
बासित अली कहते हैं, यूपी के हर गांव में दो पार्टियां होती हैं. मुस्लिम गांव में एक पार्टी अगर सपा के साथ तो दूसरी बसपा के साथ हुआ करती थी. बसपा के कमजोर होने से मुस्लिमों का एक ग्रुप कमजोर हुआ है और उसे मजबूत सियासी ठिकाना नहीं मिल रहा है, जिनको बीजेपी के साथ जोड़ने की प्लानिंग अल्पसंख्यक मोर्चा ने की है. हमारी कोशिश होगी कि ऐसे मुस्लिमों को पहचान किया जाए और उन्हें आगे किया जाए जो बीजेपी की विचारधारा से मेल खाते हों. इससे मुस्लिम बहुल गांवों में भी पार्टी का जमीनी आधार को मजबूती मिलेगी.
मदद के बदले 2027 में सियासी मदद का प्लान
यूपी के पंचायत चुनाव में प्रधान और बीडीसी प्रत्याशी पार्टी के सिंबल पर नहीं लड़ा जाता है, लेकिन परोक्ष तौर पर सभी सियासी दल अहम रोल अदा करते हैं. सपा से लेकर बीजेपी तक सभी सियासी दल अपनी विचारधारा से जुड़े लोगों को पंचायत चुनाव में लड़वाते और उनकी सियासी मदद करने का काम करते हैं.
देखा गया है कि पंचायत चुनाव में सत्ताधारी दल से जुड़े नेताओं को राजनीतिक लाभ मिलता रहा है. इसी मद्देनजर बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा यूपी के मुस्लिम बहुल गांवों का डाटा तैयार कर रहा है, जहां से मुस्लिम प्रधान और बीडीसी सदस्य चुने जाते रहे हैं.
बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा मुस्लिम बहुल गांवों का डाटा तैयार करने के साथ-साथ पंचायत चुनाव लड़ने वाले नेताओं की फेहरिस्त भी तैयार कर रही है. बीजेपी ऐसे मुस्लिम नेताओं की तलाश कर रही है, जो सपा के विरोधी हों और पंचायत चुनाव लड़ने का दमखम रखते हों. सपा के समर्थन वाले कैंडिडेट के खिलाफ पंचायत चुनाव लड़ने वाले मुस्लिम नेताओं की लिस्ट बनाने के साथ-साथ अल्पसंख्यक मोर्चा उन्हें पार्टी के स्थानीय विधायक और सांसद के साथ भी कनेक्ट कराने की रणनीति बनाई है.
बीजेपी अपने स्थानीय विधायक-सांसद और पूर्व विधायक के साथ मुस्लिम नेताओं को रिश्ते को मजबूत बनाना चाहती है. बीजेपी के स्थानीय विधायक और सांसद के साथ कनेक्ट होने मुस्लिम नेताओं को भी सत्ता का तमाम लाभ मिल सकेगा. इसके अलावा तहसील से लेकर थाने तक सियासी प्रभाव भी बढ़ेगा. सरकारी योजनाओं का लाभ भी अपने-अपने गांव में दिला सकेंगे. पंचायत चुनाव में बीजेपी का कैडर उन्हें सियासी मदद करेगा ताकि चुनाव जीतकर वे प्रधान और बीडीसी सदस्य बन सकें. इस तरह बीजेपी पंचायत चुनाव में उनकी मदद करेगी तो उसके बदले 2027 के चुनाव में उनकी मदद लेने की प्लानिंग है.
सपा के मजबूत वोटबैंक में सेंधमारी का बीजेपी प्लान
यूपी में मुस्लिम सपा का कोर वोटबैंक माना जाता है. 2022 के विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी और 2024 के लोकसभा चुनाव में 85 फीसदी से ज्यादा मुसलमानों ने सपा को वोट देने का काम किया था. मुसमलानों के एकजुट होकर सपा के पक्ष में वोट डालने के चलते मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी जीत नहीं सकी. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बीजेपी के लिए सियासी डगर काफी मुश्किल रहती है. मुस्लिम के गांव में मकसद जिताने-हराने तक सीमित नहीं है बल्कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी जमीनी कार्यकर्ता ही काम करता है.
मुस्लिम बहुल गांवों में कई बार बीजेपी को बूथ संभालने वाले तक मिलने मुश्किल हो जाते हैं. यही वजह है कि बीजेपी ने अब इन मुस्लिम गांवों में भी ऐसे कार्यकर्ता और स्थानीय नेता तैयार करने की रणनीति बनाई है, जो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए काम करें. अब पंचायत चुनाव के जरिए बीजेपी मुस्लिम बहुल गांव में अपनी सियासी जड़े जमाने के फिराक में है.
बीजेपी ने प्लान बनाया है कि जहां पर मुस्लिम आबादी बहुत ज्यादा है, वहां पर मुस्लिम प्रत्याशियों का समर्थन करना आगे के लिए फायदेमंद हो सकता है. इसके लिए भरोसेमंद मुस्लिम प्रत्याशी और कार्यकर्ताओं की तलाश में अल्पसंख्यक मोर्चा जुट गया है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी पंचायत चुनाव के जरिए सपा के मुस्लिम वोटबैंक में कितनी सेंधमारी कर पाती है?